देवउठनी एकादशी के दिन होता है तुलसी विवाह, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

By Tatkaal Khabar / 07-11-2019 02:38:03 am | 14308 Views | 0 Comments
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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस साल देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को मनाई जाने वाली है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालीग्राम का विवाह कराया जाता है। यह विवाह एक आम विवाह की तरह होता है जिसमें शादी की सारी रस्में निभाई जाती हैं। बारात से लेकर विदाई तक सभी रस्में होती हैं। आइए आपको बताते हैं तुलसी विवाह के शुभ मुहुर्त और पूजा विधि के बारे में।
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कार्तिक नास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी की देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। वहीं कुछ लोग द्वादशी के दिन भी तुलसी विवाह करते है। जहां एकादशी 8 नवंबर को है। वहीं द्वादशी 9 नवंबर को पड़ रही है।

तुलसी विवाह की तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ: 07 नवंबर 2019 की सुबह 09 बजकर 55 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 08 नवंबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक 
द्वादशी तिथि आरंभ: 08 नवंबर 2019 की दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से
द्वादशी तिथि समाप्‍त: 09 नवंबर 2019 की दोपहर 02 बजकर 39 मिनट तक

तुलसी विवाह पूजा विधि:
सबसे पहले तुलसी के पौधे को आंगन के बीचों-बीच में रखें और इसके ऊपर भव्य मंडप सजाएं। इसके बाद माता तुलसी पर सुहाग की सभी चीजें जैसे बिंदी, बिछिया,लाल चुनरी आदि चढ़ाएं।

इसके बाद विष्णु स्वरुप शालिग्राम को रखें और उन पर तिल चढ़ाए क्योंकि शालिग्राम में चावल नही चढ़ाए जाते है। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। साथ ही गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें। अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें। इसके बाद दोनों की घी के दीपक और कपूर से आरती करें। और प्रसाद चढ़ाएं।


तुलसी विवाह की कथा

बहुत समय पहले जलंधर नामक एक राक्षस हुआ करता था। जिसने सभी जगह बहुत तबाही मचाई हुई थी। वह बहुत वीर और पराक्रमी था। उसकी वीरता का राज उसकी पत्नी वृंदा का परिव्रता धर्म था। जिसकी वजह से वह हमेशा विजयी हुआ करता था। जलंधर से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा की गुहार लगाई। देवगणों की प्रार्थना सुनने के बाद भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का फैसला लिया। उन्होंने जलंधर का रुप धरकर छल से वृंदा को स्पर्श किया। जिससे वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और जंलधर का सिर उनके घर में आकर गिर गया। इससे वृंदा बहुत क्रोधित हो गई और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि तुम पत्थर के बनोगे। तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। विष्णु भगवान का पत्थर रुप शालिग्राम कहलाया। इसके बाद विष्णु जी ने कहा- हे वृंदा मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक की एकादशी पर मेरा तुमसे विवाह करवाएगा उसकी सारी मनोकामना पूरी होगी।​