रिसर्च का दावा, हिन्दू धर्म का प्रतीक स्वास्तिक है प्राचीन सभ्यताओं से भी पुराना...
भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को प्राचीन काल से मंगल-प्रतीक के रूप में जाना जाता है. इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है. स्वास्तिक शब्द सु-अस-क से बना है. 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है. इस प्रकार 'स्वास्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला.
इसका अस्तित्व सिन्धु घाटी सभ्यता के भी पहले का माना जाता है. स्वास्तिक को नेपाल में 'हेरंब' के नाम से पूजा जाता है. वहीं मेसोपोटेमिया में अस्त्र-शस्त्र पर विजय प्राप्त करने हेतु स्वास्तिक चिह्न का प्रयोग किया जाता है. स्वास्तिक का प्रयोग अन्य धर्मों में भी किया जाता है. सिन्धू घाटी सभ्यता की खुदाई में ऐसे चिन्ह व अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिनसे यह प्रमाणित हो जाता है कि लगभग 2-3 हजार वर्ष पूर्व में भी मानव सम्भ्यता अपने भवनों में इस मंगलकारी चिन्ह का प्रयोग करती थी. द्वितीय विश्व युद्ध के समय एडोल्फ हिटलर ने उल्टे स्वास्तिक का चिन्ह अपनी सेना के प्रतीक रूप में शामिल किया था. सभी सैनिकों की वर्दी एवं टोपी पर उल्टा स्वास्तिक चिन्ह अंकित था. ऐसा भी माना जाता है कि उल्टा स्वास्तिक ही उसकी बर्बादी का कारण बना. बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है. यह भगवान बुद्ध के पग़ चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है. यही नहीं स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है. जैन धर्म में भी स्वास्तिक का अत्यधिक महत्व है. जैन धर्म में यह सातवें जीना का प्रतीक है. श्वेताम्बर जैन सांस्कृतिक में स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक माना जाता है. पश्चिम में स्वास्तिक को फांसीवाद से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन हज़ारों सालों से इसे सौभाग्य के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. अमरीकी सेना ने पहले विश्व युद्ध में इस प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल किया. ब्रिटिश वायु सेना के लड़ाकू विमानों पर इस चिह्न का इस्तेमाल 1939 तक होता रहा था. देखते ही देखते इसने नाज़ियों के लाल रंग वाले झंडे में जगह ले ली और 20वीं सदी के अंत तक इसे नफ़रत की नज़र से देखा जाने लगा. युद्ध ख़त्म होने के बाद जर्मनी में इस प्रतीक चिह्न पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और 2007 में जर्मनी ने यूरोप भर में इस पर प्रतिबंध लगवाने की नाकाम पहल की थी. अन्य देशों के लिए स्वास्तिक के चिन्ह का अपना एक अलग अर्थ और महत्व रहा है. वहीं भारत में इस चिन्ह को भगवान गणेश और लक्ष्मी जी का प्रतीक माना जाता है. 11,000 सालों से स्वास्तिक मानव सभ्यता में मौजूद है. वेदों में भी इसका ज़िक्र मिलता है. इससे पता चलता है कि हिन्दू सभ्यता को जितना पुराना माना जाता है, ये उससे ज़्यादा पुरानी है.