id al-Adha 2023: कल मनाया जायेगा कुर्बानी से जुड़ा ईद का पर्व

By Tatkaal Khabar / 28-06-2023 04:00:20 am | 5708 Views | 0 Comments
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Eid al-Adha 2023: कुर्बानी का पर्व माना जाने वाला ईद उल-अजहा या फिर कहें बकरीद का पर्व इस साल 29 जून 2023 को मनाया जाएगा। मुस्लिम समुदाय से जुड़े दो बड़े पर्व ईद उल-फितर यानि मीठी ईद और ईद उल-अजहा यानि बकरीद को लेकर अक्सर भ्रम हो जाया करता है। अलग-अलग समय में मनाए जाने वाले ये दोनों ही पर्व इस्लाम को मानने वालों के लिए बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। इन दोनों ही पर्वों के साथ अलग-अलग मान्यताएं और मनाने का तरीका भी जुड़ा हुआ है।
 इस्लामिक कैलेंडर का यह अंतिम महीना होता है। इसके बाद नव वर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इसमें एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों एवं जरूरतमंदों को दिया जाता है। तीसरा और अंतिम हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है। देश और दुनिया में बकरीद पर्व पर उत्सव जैसा माहौल रहता है।
साल 2023 में 29 जून को बकरीद है। इस वर्ष 19 जून को देश के कुछ हिस्सों में चांद का दीदार हुआ है। अतः चांद के दीदार के दसवें दिन यानी 29 जून को बकरीद मनाई जाएगी। बकरीद को ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है। ईद-उल-अजहा का अर्थ कुर्बानी वाली ईद है। इस्लाम धर्म में बकरीद दूसरा बड़ा त्यौहार है। धर्म जानकारों की मानें तो रमजान महीने के खत्म होने के 70 दिन बाद बकरीद मनाई जाती है। इस मौके पर बकरे की कुर्बानी देने का विधान है। आसान शब्दों में कहें तो बकरे की कुर्बानी दी जाती है। आइए, बकरीद पर्व का इतिहास और धार्मिक महत्व जानते हैं-

इस्लाम धर्म के जानकारों की मानें तो पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद ने अपना जीवन खुदा को समर्पित कर दिया था। नित प्रतिदिन खुदा की इबादत करते थे। उनकी इबादत से 'खुदा' बेहद खुश हुए। एक दिन खुदा ने पैगंबर हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही। इसमें खुदा ने पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद से उनकी सबसे कीमती चीज की कुर्बानी मांगी। उस समय उनके लिए सबसे कीमती उनका बेटा ही था, जो उन्हें कई सालों की मन्नतों के बाद मिला था। उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया।

हजरत इब्राहिम की इबादत से खुदा यानी अल्लाह बेहद खुश हुए। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे और उसे कुर्बान होते देख नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे को कुर्बान कर दिया। हालांकि, जब उन्होंने आंखें खोली, तो देखा कि उनका बेटा बगल में खड़ा है और असल में कुर्बान बकरा हुआ। तभी से इस दिन को बकरीद के रूप में मनाया जाने लगा।

ईद-उल-अजहा का महत्व
इस्लामिक कैलेंडर का यह अंतिम महीना होता है। इसके बाद नव वर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इसमें एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों एवं जरूरतमंदों को दिया जाता है। तीसरा और अंतिम हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है। देश और दुनिया में बकरीद पर्व पर उत्सव जैसा माहौल रहता है।