शरद पूर्णिमा, अमृत बन जाती है इस रात को बनी खीर...जानिए क्यों
दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चंद्रमा की चांदनी विशेष गुणकारी, श्रेष्ठ किरणों वाली और औषधियुक्त होती है। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।
इस बार 23 और 24 अक्टूबर यानी दो दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
इस दौरान खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखने का विधान किया गया है। माना जाता है कि इससे खीर में चंद्रमा का अमृत आ जाता है। यह तो है अध्यात्मिक बात, लेकिन इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी है।
एक अध्ययन के अनुसार, दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर को खुले आसमान के नीचे रखने और अगले दिन खाने का विधान तय किया था। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।