गुरु प्रदोष व्रत 2018: करें शिवजी की पूजा और व्रत

By Tatkaal Khabar / 20-12-2018 03:38:00 am | 14002 Views | 0 Comments
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गुरुवार को पड़ने वाला प्रदोष गुरु प्रदोष के नाम से जाना जाता है। 20 दिसंबर को प्रदोष व्रत किया जाएगा। इस उपवास को रख कर भक्त अपने सभी मौजूदा परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं। इसके अलावा गुरुवार प्रदोष व्रत रखने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से उस पर आने वाली विपदा भी टल जाती है साथ ही शत्रुओं का नाश होता है।
गुरु प्रदोष व्रत करने के लिए प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए। नित्यकर्मों से निवृत होकर भगवान शिव का नाम स्मरण करना चाहिए।

पूरे दिन उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पहले स्नान कर सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए।

- गंगाजल से पूजन के स्थान को शुद्ध करना चाहिए और उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और फिर भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
तरह-तरह पुष्पों, लाल चंदन, हवन और पंचामृत द्वारा भगवान शिवजी की पूजा करनी चाहिए।

- शुरूआती पूजा की जाती है जिसमें भगवान शिव को देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिक और नंदी के साथ पूजा जाता है।
पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।

- इस अनुष्ठान के बाद भक्त प्रदोष व्रत कथा सुनते है या शिव पुराण की कहानियां सुनते हैं।

महामृत्यंजय मंत्र का 108 बार जाप भी किया जाता है। पूजा के समय एकाग्र रहना चाहिए और शिव-पार्वती का ध्यान करना चाहिए।

देवराज इंद्रा और दैत्य वृत्रासुर की सेना के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में उसमें दैत्यों की हार हुई। हार से क्रोधित होकर वृत्रासुर ने एक विकराल रूप धारण कर लिया। उसका रूप देखकर देवता घबरा गए। देवताओं ने बृहस्पतिदेव की शरण ली। उनसे सहायता मांगने पहुंचे। बृहस्पतिदेव के देवताओं से कहा कि पहले वह वृत्रासुर का वास्तविक परिचय देंगे। बृहस्पति देव ने उस दैत्य के बारे में बताना आरंभ किया। उन्होंने कहा, वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर महादेव को प्रसन्न किया था। पहले वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश गया। वहां भोलेनाथ के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभु! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते है। किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।'

चित्ररथ की बात सुन शिवशंकर मुस्कुराए और बोले- 'हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!'

माता पार्वती उसकी यह बात सुनकर अत्यधिक क्रोधित हुई और उसे शाप दे दिया कि वह दैत्य रूप धारण कर विमान से नीचे गिर जाएगा। इस प्रकार माता के शाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना। गुरुदेव बृहस्पति ने आगे बताया कि वृत्रासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है। इसलिए अगर उसके प्रकोप से बचना है तो महादेव को प्रसन्न करना होगा। बृहस्पति देव ने इंद्र को प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया और इसके फलस्वरूप उन्होंने वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली।