चैत्र है हिंदू कैलेंडर का पहला महीना, जानिए इसके बारे में
सनातन संस्कृति के कैलेंडर में चैत्र को पहला महीना माना जाता है। मान्यता है कि चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि से ही हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ हुआ था। इस मास में कई बड़े त्यौहार और महत्वपूर्ण तिथि आते हैं। इसलिए इस मास का उपासना करने के लिए बड़ा महत्व बतलाया गया है। इस मास में शारदीय नवरात्रि आते हैं, जिसमें माता की आराधना की जाती है। इसलिए चैत्र मास का बड़ा महत्व शास्त्रों में बतलाया गया है।
विक्रम संवत का प्रारंभ चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से होता है और इसी दिन से चैत्र नवरात्र का आरंभ होता है और मनोकामना पूर्ति के लिए देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। इस दिन भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था। इसी दिन पांडव राजवंश के युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। सिखों के दूसरे गुरु अंगददेव का जन्म भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था।
चैत्र मास को यह नाम चित्रा नक्षत्र की वजह से मिला है। इसको संवत्सर भी कहा जाता है। शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नाव को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया था। प्रलयकाल के समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि का प्रारंभ हुआ था।
हिन्दू कैलेंडर का प्रथम माह है चैत्र और अंतिम है फाल्गुन। दोनों ही माह वसंत ऋतु में आते हैं। ईसाई माह अनुसार यह मार्च में आता है। चैत्र की प्रतिपदा तिथि से ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है।
ईरान में इस तिथि को 'नौरोज' यानी 'नया वर्ष' मनाया जाता है। आंध्र में यह पर्व 'उगादिनाम' से मनाया जाता है। उगादिका अर्थ होता है युग का प्रारंभ, अथवा ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन।
इस प्रतिपदा तिथि को ही जम्मू-कश्मीर में 'नवरेह', पंजाब में वैशाखी, महाराष्ट्र में 'गुडीपड़वा', सिंध में चेतीचंड, केरल में 'विशु', असम में 'रोंगली बिहू' आदि के रूप में मनाया जाता है।
विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म हुआ था।