डिजिटल मीडिया पर सरकार की नई गाइडलाइंस को आसान भाषा में समझें
काफी समय तक विचार-विमर्श करने के बाद भारत सरकार ने आख़िरकार डिजिटल मीडिया को लेकर एक गाइडलाइन जारी कर दी है। बहुत समय से इस पर लोग सवाल उठा रहे थे कि जिस प्रकार से फिल्मों का कंटेंट देखने और उसकी गाइडलाइंस के लिए सेंसर बोर्ड है, उसी प्रकार इंटरनेट पर कंटेंट को भी फिल्टर और कटगराईज करने की आवश्यकता है।
हाल ही में दो बड़ी घटनाएं हुईं और इन्हीं घटनाओं के मद्देनजर सरकार एक्शन में नजर आई है।
पहली घटना देश के बाहर से थी और अमेरिका में जिस प्रकार कैपिटल हिल पर ट्रंप समर्थक प्रदर्शनकारी चढ़ गए थे, उसे वैश्विक स्तर पर 'लोकतंत्र का काला धब्बा' माना गया, परंतु असली बात यह है कि तमाम बड़ी अमेरिकी कंपनियां जिनमें ट्विटर है, फेसबुक है, यूट्यूब है, वह सक्रिय भूमिका में इस तरह के कंटेंट को फिल्टर करती नजर आईं।
यहां तक कि खुद तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तक का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया।
दूसरी घटना थी भारत में किसान आंदोलन के दौरान, लाल किले पर कुछ अराजक तत्वों के चढ़ने और अपना धार्मिक झंडा लहराने की। इसे लेकर भी बड़ी आलोचना हुई, किंतु सरकार के अनुसार जब उसने ट्विटर और कुछ अन्य प्लेटफार्म को इस घटना के मद्देनजर सपोर्ट करने वाले पोस्ट्स की निगरानी करने और उनके अकाउंट पर कार्रवाई करने के लिए कहा, तो यह कंपनियां टालमटोल करती नजर आईं।
यहाँ तक कि सरकार से बातचीत के दौरान ही ट्विटर द्वारा इस पर एक ब्लॉग लिख दिया गया, जिसके बाद सरकार नाराज नजर आई, और उसकी नाराजगी तब खुलकर झलकी, जब कई सरकारी अकाउंट और बड़े लीडरों के अकाउंट कू ऐप पर नज़र आने लगे।
बहरहाल, अब नई गाइडलाइंस आ गई हैं और नई गाइडलाइंस के साथ संभवतः इन्हीं चीजों को साधने की कोशिश की जा रही है।
हाल-फिलहाल सरकार ने बड़ी सावधानी के साथ कदम बढ़ाया है, जिससे यह मैसेज ना जाए कि सरकार इंटरनेट पर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर और विदेशी कंपनियों पर अंकुश रखना चाहती है। अपने वक्तव्य में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बार-बार यह कहा है कि सोशल मीडिया का सरकार वेलकम करती है, किंतु उनका नियमन जरूरी है, खासकर तब, जब इससे देश को खतरा हो।
प्रश्न उठता है कि इंटरनेट कोई आज से तो चल नहीं रहा है!
लगभग 3 दशक से अधिक समय हो गया है और तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स भी 2 दशक से पूरी तरह से एक्टिव हैं, फिर आज तक इस के नियमन के प्रयास क्यों नहीं हुए?
अगर आप इसकी तह में जाएंगे, तो आपको पता चलेगा कि इसका नियमन बेहद कठिन है।
कंटेंट को देखने, कंटेंट को फिल्टर करने, उसे कटगराईज करने और उसे आगे बढ़ाने या नहीं बढ़ाने का निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल होने वाली है, और इसी को लेकर हालिया गाइडलाइन्स पर इंडस्ट्री के रोनित राय ने भी सवाल उठाया है।
चूंकि फिल्म इंडस्ट्री का सेंसर बोर्ड हर वक्त ही विवादित रहा है।
किस सीन को काटना है, किसको नहीं काटना है, इसे लेकर हमेशा ही सवाल उठे हैं और क्रिएटिव इंडस्ट्री में इस तरह के सवाल उठना लाजमी भी हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब ओटीटी के मुकाबले, नंबर्स में चंद फिल्मों को लेकर कभी एक आम राय नहीं बन सकी, तो इंटरनेट का असीमित कंटेंट, जिसमें तमाम विदेशी कंटेंट भी शामिल हैं, उसे लेकर किस प्रकार फिल्ट्रेशन होगी?
हालांकि यह प्रक्रिया की शुरुआत भर है और सरकार को इस बात को लेकर कहीं ना कहीं बधाई अवश्य ही देनी चाहिए कि सावधानी से ही सही, इसकी शुरुआत तो उसने की, पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह किसी पतले तार पर सर्कस दिखाने के समान है।
नियमन के चक्कर में कहीं हम क्रिएटिविटी का गला ही न घोंट दें!
नियमन के चक्कर में कहीं हम इन ओपन स्थानों / संस्थानों पर इतना अंकुश न लगा दें कि निवेश, टेक्नोलॉजी और बड़ी इनोवेटिव कंपनियां ही हमारे देश में आने से कतराने लगें।
हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि तमाम न्यूज पोर्टल, तमाम यूट्यूब वीडियो चैनल सरकार के खिलाफ अपनी बातें करते हैं और सरकार कहीं विरोध को दबाने के लिए हालिया नियमों का सहारा न लेने लगे।
हम सभी जानते ही हैं कि ट्रेडिशनल मीडिया पर सरकार का घोषित- अघोषित, किस स्तर तक का दबाव रहता है।
अब जब सरकार डिजिटल मीडिया के लिए नियम ला रही है और कानून बनाने की बात हो रही है, तो अपने विरोध में सक्रिय किसी यूट्यूब चैनल या सोशल मीडिया अकाउंट को सरकार बंद करने के लिए ना कहने लगे। उसके अधिकारी हालिया नियमों और आने वाले डिजिटल मीडिया सम्बंधित कानून का दुरुपयोग ना करने लगें, इसका भी हमें खास ध्यान रखना होगा।
हालांकि अभी बहुत बारीकी से बात कही गई है, किंतु भविष्य को लेकर हमें सजग रहना ही होगा।