DELHI ASEMBLY ELECTION 2025: फिर आएगी AAP PARTY या BJP , ये 10 सीटें तय करेंगी दिल्ली में किसकी सरकार?
दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए 5 फरवरी को बहुत ही निर्णायक मुकाबला होने जा रहा है। आम आदमी पार्टी (AAP) खुद भी महसूस कर रही है कि इस बार 2015 और 2020 जैसी न तो लहर है और न ही विपक्ष पहले की तरह कमजोर है। कुछ सीटों पर कांग्रेस की मजबूती से भी उसकी चिंता बढ़ी हुई है। दूसरी तरफ बीजेपी है, जो 'अबकी बार, नहीं करेंगे इंतजार' वाले मूड में है। हम यहां दिल्ली की सिर्फ 10 विधानसभा सीटों का विश्लेषण कर रहे हैं और इन सीटों पर मतदाताओं का जो भी रुझान होगा, उससे ही 8 फरवरी को नई विधानसभा की तस्वीर साफ होगी।
दिल्ली में अगली सरकार तय करने वाली 10 सीटें कौन हैं?
1) नई दिल्ली नई दिल्ली विधानसभा सीट दिल्ली की सबसे प्रतिष्ठित सीट है। 1998 से दिल्ली में जितने भी चुनाव हुए हैं, इसी से जीतने वाले एमएलए को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला है। पिछली बार कालकाजी से जीतने वाली आम आदमी पार्टी की आतिशी मार्लेना मुख्यमंत्री जरूर बनी हैं, लेकिन उन्हें यह मौका अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की वजह से मिला है। पिछली बार इस सीट पर केजरीवाल को 61% वोट मिले थे। लेकिन, इस बार मुकाबला आसान नहीं लग रहा है। बीजेपी के पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित की वजह से उन्हें इस सीट पर अबतक की सबसे कड़ी चुनौती मिल रही है। दूसरी बात ये कि इस बार इस सीट पर 36,800 या 25.3% वोटर कम हुए हैं।
दिल्ली में वोटिंग से पहले BJP के आंतरिक सर्वे के आंकड़े, भाजपा को मिल रही कितनी सीटें? सिसोदिया पर पहला हमला यही कहकर हो रहा है कि वह पटपड़गंज से पिछली बार हारते-हारते बचे, इसलिए चुनाव क्षेत्र बदलना पड़ा। कुल मिलाकर जमीनी स्थिति सिसोदिया के लिए इस बार यहां भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। यही वजह है कि वह पार्टी में नंबर दो होते हुए भी अपनी सीट से प्रचार के लिए बाहर नहीं निकल सके; और इस सीट पर वोटिंग का जो ट्रेंड रहने वाला है, वह दिल्ली में अगली सरकार बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।
पटपड़गंज जाहिर है कि अगर पटपड़गंज में 'आप' मजबूत स्थिति में होती तो सिसोदिया को सीट छोड़ने की 'बदनामी' क्यों मोल लेनी पड़ती। 2020 में उन्हें यहां पर 49.33% और बीजेपी के रवींद्र सिंह नेगी को 47.07% वोट मिले थे।
भाजपा ने अपने मौजूदा पार्षद नेगी पर ही फिर से दांव लगाया है, जबकि आप ने पूर्वांचली वोट के चक्कर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले सोशल मीडिया फेम के अवध ओझा को उतारा है। कांग्रेस ने अनिल कुमार पर दांव लगाया है। इस सीट पर शहरी मध्यम वर्ग के साथ-साथ पूर्वांचली, पहाड़ी और गुर्जर समुदाय से चुनावी समीकरण तय होना है और यही पैटर्न पूरी दिल्ली में नजर आने की संभावना है।
4) कालकाजी कालकाजी सीट पर पिछली बार आतिशी मार्लेना 52.28% वोट लेकर जीती थीं। लेकिन, इस बार मुख्यमंत्री होते हुए भी उनके लिए क्षेत्र से बाहर दूसरे प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार का वक्त निकाल पाना मुश्किल रहा है। दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने गुर्जर नेता और पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को मौका दे रखा है तो कांग्रेस ने तेज तर्रार महिला नेता अलका लांबा को उतारा है। इस सीट पर झुग्गी-झोपड़ी के वोटरों का रुख बहुत ज्यादा अहमियत रखने वाला है तो पंजाबी और सिख वोटरों के मतदान का ट्रेंड भी चुनाव की दिशा तय कर सकता है। मतदान से एक दिन पहले तक दिल्ली की 70 सीटों में से आम आदमी पाटी के लिए यह सबसे मुश्किल सीटों में शामिल है।
5) ओखला ओखला विधानसभा सीट पर पिछली बार आप के अमानतुल्लाह खान को 2020 में 66% वोट मिले थे। 40% से ज्यादा मुसलमानों वाली इस सीट पर आमतौर पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में ही मुकाबला होता रहा है। लेकिन, इस बार असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने दिल्ली दंगों के आरोपी शिफा उर रहमान को उतारकर मुकाबले को मजेदार बना दिया है। वक्फ बोर्ड घोटाले के आरोपों में जेल से जमानत पर छूटे खान को लेकर क्षेत्र में काफी एंटी इंकंबेंसी दिख रही है तो कांग्रेस ने अपनी मौजूदा पार्षद और पूर्व एमएलए आसिफ मोहम्मद खान की बेटी अरिबा खान को मौका देकर उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। तीन दमदार मुस्लिम उम्मीदवारों को देखकर बीजेपी को लगता है कि वह यहां इस बार फायदे में रह सकती है।
6) मटिया महल सेंट्रल दिल्ली की मटिया महल विधानसभा में भी मुस्लिम आबादी 40% के आसपास है। इस सीट पर पिछली बार आप के शोएब इकबाल को 76% वोट मिले थे। पार्टी ने इस बार उनके बेटे और पूर्व डिप्टी मेयर आले मोहम्मद को उतारा है। जबकि, कांग्रेस ने पहले आप सरकार में मंत्री रह चुके आसिम अहमद खान को टिकट दिया है। 2015 में इन्होंने ही यहां से शोएब को हराया था। दो मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच इस कांटे की टक्कर में बीजेपी को अपनी दीप्ति इंदौरा से उम्मीदें लगी हैं। इस सीट पर मतदान का ट्रेंड यह बताएगा कि क्या दिल्ली में मुस्लिम वोट कांग्रेस और आप के बीच बंट रहा है? अगर ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए शुभ संकेत होगा और अगर एकतरफा आप के खाते में गया तो फिर भाजपा का वनवास जारी रहने की संभावना दिखेगी।
7) बल्लीमारान बल्लीमारान भी दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों में से है, जहां मुस्लिम आबादी 50% के करीब है। पिछली बार यहां आप के प्रत्याशी को करीब 65% वोट मिले थे। आप ने यहां मौजूदा विधायक और मंत्री इमरान हुसैन पर ही दांव लगाया है, जबकि कांग्रेस ने अपने दिग्गज और कई बार के मंत्री हारुन यूसुफ को मौका दिया है। अगर इस सीट पर कांग्रेस ने मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा तोड़ लिया तो बीजेपी के चर्चित रामनगर वार्ड पार्षद कमल बागड़ी कुछ नया करके दिखा सकते हैं। बागड़ी स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रिय हैं। लेकिन, सबकुछ इस बात पर निर्भर करता है कि मुसलमान वोटर ध्रुवीकृत होकर मतदान करते हैं या फिर कांग्रेस और आप दोनों के बीच बंटते हैं।
8) चांदनी चौक 2020 में आप के प्रह्लाद साहनी को यहां 66% वोट मिले थे। इस बार पार्टी ने उनके बेटे पुनरदीप सिंह को टिकट दिया है। जबकि, कांग्रेस ने पूर्व सांसद जयप्रकाश अग्रवाल के बेटे मुदित अग्रवाल पर दांव लगाया है। बीजेपी इस सीट पर 1993 में जीती थी, उसके बाद यहां से वह कभी नहीं जीती है और मुकाबला कांग्रेस और आप में ही होता रहा है। बीजेपी ने अबकी बार यहां से स्थानीय कारोबारी सतीश जैन को उतारा है। करोबारियों के इस गढ़ में मतदान का ट्रेंड दिल्ली में अगली सरकार बनाने का ट्रेंड भी साबित हो सकता है।
9) मुस्तफाबाद मुस्तफाबाद में भी मुसलमानों की जनसंख्या 40% के करीब है। पिछली बार आप के हाजी यूनुस को यहां 53% वोट मिले थे। आप ने यहां पर इस बार आदिल अहमद खान को और कांग्रेस ने पूर्व एमएलए हसन अहमद के बेटे अली मेहंदी को मौका दिया है। लेकिन, ओवैसी की एआईएमआईएम ने दिल्ली दंगों के आरोपों और कथित सरगना ताहिर हुसैन को उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। बीजेपी ने पहाड़ी और पूर्वांचली वोट बैंक को देखते हुए यहां से मोहन सिंह बिष्ट को टिकट देकर तीन मुस्लिम उम्मीदवारों के त्रिकोणीय मुकाबले का फायदा उठाने की कोशिश की है। वैसे इस सीट से एक बार गैर-मुस्लिम के चुनाव जीतने का भी इतिहास है, इसलिए यहां का चुनाव परिणाम भी दिल्ली की अगली सरकार में बहुत बड़ा रोल निभा सकता है।
10) बाबरपुर बाबरपुर में आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता और मंत्री गोपाल राय को पिछली बार 59% से ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन, इस बार नई दिल्ली, जंगपुरा, कालकाजी की तरह यह भी उसके लिए प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी है। इस सीट पर भी 40% से ज्यादा मुसलमान हैं। इस सीट पर पूर्वांचली वोटरों की भी बड़ी तादाद है तो 50 हजार के करीब तो सिर्फ ब्राह्मण वोटर बताए जाते हैं। बीजेपी इस सीट को चार बार जीत भी चुकी है और इस बार उसने अनिल वशिष्ट को मौका दिया है। कांग्रेस ने यहां मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली चेहरे इशराक अहमद को मौका देकर 'आप' का गणित बिगाड़ने की कोशिश की है। अगर अहमद मुस्लिम मतदाताओं का एक हिस्सा भी वोट के रूप में जुटाने में सफल रहे तो गोपाल राय का हिसाब-किताब बिगड़ सकता है।