राष्ट्रपति राम कोविंद का स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम सम्बोधन

By Tatkaal Khabar / 14-08-2018 03:36:33 am | 17102 Views | 0 Comments
#

आज़ादी के इकहत्तर साल पूरे होने पर देश के नागरिकों के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश को आजादी के इस पावन पर्व पर बधाई दी, तो देश के प्रति उनके कर्तव्य को भी याद दिलाया. राष्ट्रपति ने इस दिन को आजादी के शहीदों को याद करने का दिन बताया तो साथ ही उम्मीद जाहिर की कि हमारे युवा राष्ट्र-निर्माण मे उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प भी लेंगे. राष्ट्रपति ने देश के विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे साल में चार या पांच दिन किसी गांव में बिताकर ‘यूनिवर्सिटीज़ सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी' को पूरा करें. उन्होंने देशवासियों से अपील की कि एकजुट होकर, हम 'भारत के लोग' अपने देश के हर नागरिक की मदद कर सकते हैं.

राष्ट्रपति ने कहा कि आज देश कई ऐसे लक्ष्यों के काफी क़रीब है, जिनके लिए हम वर्षों से प्रयास करते आ रहे हैं. इसमें सबके लिए बिजली, खुले में शौच से मुक्ति, सभी बेघरों को घर और अति-निर्धनता को दूर करने के लक्ष्य शामिल हैं. उन्होंने जोर दिया कि ऐसे निर्णायक दौर में हमें ध्यान भटकाने वाले मुद्दों और निरर्थक विवादों में नहीं पड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि ग्राम स्वराज अभियान से देश के सबसे निचले तबके तक पहुंचा जा रहा है और ये काम केवल सरकार का नहीं बल्कि समाज और सरकार की साझेदारी से संभव है.    
                                                                                               
          राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपना संबोधन दिया। इस संबोधन में राष्ट्रपति ने अहिंसा, महिला सशक्तिकरण, किसानों, युवाओं और सैनिकों पर बात की। 
राष्ट्रपति ने कहा, "आज हम एक निर्णायक दौर से गुजर रहे हैं, ऐसे में हमें इस बात पर जोर देना है कि हम ध्यान भटकाने वाले मुद्दों में न उलझें और न ही निरर्थक विवादों में पड़कर अपने लक्ष्यों से हटें। आज जो निर्णय हम ले रहे हैं, जो बुनियाद हम डाल रहे हैं, जो परियोजनाएं हम शुरू कर रहे हैं, जो सामाजिक और आर्थिक पहल हम कर रहे हैं, उन्हीं से यह तय होगा कि हमारा देश कहां तक पहुंचा  
                            राष्ट्रपति ने कहा कि 1947 में राजनैतिक आज़ादी मिलने के इतने दशक बाद भी प्रत्येक भारतीय एक स्वाधीनता सेनानी की तरह ही देश के प्रति अपना योगदान दे सकता है. उन्होंने बताया कि कैसे हमारे किसान करोड़ों देशवासियों के लिए अन्न पैदा करते हैं, तो हमारे सैनिक, सरहदों पर बर्फीले पहाड़ों पर, चिलचिलाती धूप में, सागर और आसमान में पूरी बहादुरी और चौकसी के साथ देश की सुरक्षा में समर्पित रहते हैं. हमारी पुलिस और अर्धसैनिक बल अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए न केवल आतंकवाद और अपराधों का मुक़ाबला करते हैं बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के समय वे हम सबको सहारा देते हैं. देश की महिलाओं के योगदान को याद करते हुए राष्ट्रपति ने उनको जीवन में आगे बढ़ने के हर तरह के अधिकार और संशाधन मुहैया कराने पर जोर दिया. राम नाथ कोविन्द ने देश के नौजवानों को भारत की आशाओं और आकांक्षाओं की बुनियाद बताते हुए कहा कि उनकी असीम प्रतिभा को उभरने का अवसर देकर हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं. अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने 2 अक्टूबर से महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के समारोह शुरू होने का जिक्र किया और कहा कि हमें गांधीजी के विचारों की गहराई को समझने का प्रयास करना होगा. 

राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी के 'स्वदेशी'  और अहिंसा के संदेश पर सबसे ज्यादा जोर दिया और कहा कि हमारे समाज में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है. गांधी जी के वसुधैव कुटुंबकम् के विचार को याद करते हुए राष्ट्पति ने कहा कि हमेशा से हमारा ध्यान विश्व-कल्याण पर रहा है.

युवाओं में नैतिक शिक्षा पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त कर लेना ही नहीं है, बल्कि सभी के जीवन को बेहतर बनाने की भावना को जगाना भी है