इनकाउन्टर, मुठभेड़ की आकस्मिक व यकायक प्रकृति से इतर उ0प्र0 पुलिस और सरकार का पूर्व नियोजित आयोजन: उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी
लखनऊ 21 सितम्बर।
उ0प्र0 पुलिस ने पुलिस कप्तान अलीगढ़ की मौजूदगी में मीडिया बुला जिस प्रकार दो अपराधियों के इनकाउन्टर की पटकथा लिखी है उससे यह इनकाउन्टर, मुठभेड़ की आकस्मिक व यकायक प्रकृति से इतर उ0प्र0 पुलिस और सरकार का पूर्व नियोजित और निश्चित आयोजन लगता है। जीवन अधिकारों हेतु जिम्मेदार सरकार और उसकी पुलिस जब मौत की वीडियो रिकार्डिंग करने का आमंत्रण दे तो यह कृत्य मानवता को शर्मसार करने वाला अमानवीय कृत्य हो जाता है। मौत का ऐसा फिल्मांकन एक लेाकतांत्रिक एवं सभ्य समाज को शोभा नहीं देता।
प्रदेश सरकार की अपराध नियंत्रण की कार्यप्रणाली भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर आघात है। पुलिस का कार्य किसी भी अपराधी को पुलिस अभिरक्षा में ले न्यायिक व्यवस्था और उसकी प्रक्रिया में ला उसे दोष सिद्ध करने हेतु साक्ष्य प्रस्तुत कर न्यायालय की मदद करना है। विधि अनुसार अपराध रोकथाम और अपराधियों को दण्ड दिलाने में अक्षम और स्वेच्छाचारी सरकार यह भूल जाती है कि यह देश न्यायिक व्यवस्था संचालन हेतु इण्डियन पेनल कोड और भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता से चलता है।
कोई भी सरकार किसी व्यक्ति को उसके जीवन अधिकार से न्यायिक प्रक्रिया का शुचितापूर्ण पालन किये बिना वंचित नहीं कर सकती। जीवन के अधिकार से वंचित करने की युक्तियुक्तता निर्धारण का कार्य भारतीय संविधान ने न्यायालयांे केा दिया है, पुलिस और उसके रिंग मास्टर सरकार को नहीं।
देशी जेम्स बाण्ड बन मौके पर ही फुल एण्ड फाइनल की लाइसेंस प्राप्त योगीराज पुलिस 11 महीने में 1241 इनकाउन्टर कर चुकी है। इन इनकाउन्टर्स की विशेष बात यह रही कि यह ज्यादातर पश्चिमी उ0प्र0 में रहे और इनमें मारे जाने वाले लोगों मंे दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का बड़ा प्रतिशत रहा। यह इनकाउन्टर्स उ0प्र0 सरकार का मानों राजनीतिक कार्यक्रम बन चुका है।
नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन उ0प्र0 सरकार को इस संदर्भ में कई नोटिस जारी कर चुका है उसके बाद भी सारी संस्थाओं को दरकिनार कर यूपी पुलिस इन्काउन्टर कार्यक्रम में रत है।
संविधान, न्याय, लोकतंत्र एवं जीवन अधिकारों के विरूद्ध उ0प्र0 पुलिस की यह कार्यशैली प्रदेश को भय से मुक्त करने के नाम पर आतंकित कर एक मध्ययुगीन असभ्य, भयावह स्थल में परिवर्तित कर दिया है।
न्यायिक प्रक्रिया को सुनिश्चित और कानून व्यवस्था नियंत्रित करने वाली पुलिस जब खुद अनियंत्रित और बेलगाम हो, सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर बिना सोच विचार मृत्यु दण्ड देने लगे तो संविधान द्वारा मृत्यु दण्ड हेतु अधिकृत संस्थाएं इन मौतों का मूक साक्षी बन नहीं बैठ सकती।