जानें कब लगेगा होलाष्टक और क्यों इन दिनों को माना जाता है अशुभ
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक रहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन चैत्रकृष्ण प्रतिपदा में रंग खेला जाता है।
होलाष्टक के समय में किसी भी तरह के शुभ काम को करने की मनाही होती है। कहा जाता है कि अगर कोई शुभ कार्य इस दौरान अगर कर लिया जाए तो फिर वह सफल नहीं होता। यानी अगर इस समय में किसी का विवाह हो जाए तो वह भी टूट जाता है।
तो इसलिए होलाष्टक को माना जाता है अशुभ
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, नारायण भक्ति में लीन प्रह्लाद की भक्ति को देखकर राजा हिरण्यकश्यप काफी ज्यादा क्रोधित हो गए और होली से पहले 8 दिनों तक प्रह्लाद को कई तरह के कष्ट दिए गए। प्रह्लाद को उन दिनों ही कष्ट भुगतने पड़े थे, होलाष्टक के दिन से भक्त प्रह्लाद को कारागार में बंद कर दिया गया था और होलिका में जलाने की तैयारी की गई थी। इसीलिए होली से पहले के इन 8 दिनों को अशुभ माना जाता है।
वहीं दूसरी कहानी के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव ने होलाष्टक के दिन कामदेव को भस्म किया था। वहीं होलाष्टक के दिन से ही होलिका के लिए लकड़ियां रखी जाती है। जिस जगह होलिका दहन होगा उस जगह होली की लकड़ियां रखना शुरू होता है। भारत में कई जगह रंग को दुल्हैंडी भी कहा जाता है।
ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इन 8 दिनों में ग्रह अपने स्थान में बदलाव करते हैं। इसी वजह से ग्रहों के चलते इस अशुभ समय के दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करने से व्यक्ति के जीवन में कष्ट, दर्द का प्रवेश होता है। अगर इस समय में कोई विवाह कर ले तो भविष्य में कलह का शिकार या संबंधों में टूट पड़ सकती है।
10 मार्च को दुल्हैंडी होगी और इसी दिन सायं से ही गणगौर पूजा भी प्रारम्भ हो जाएगी। राजस्थान में गणगौर पूजा का महिलाओं के लिए विशेष महत्व है। इससे पहले 25 फरवरी को फूलेरा दूज के अबूझ सावे पर खासकर ग्रामीण इलाकों में विवाहों की धूम रहेगी।
होलाष्टक की परंपरा
जिस दिन से होलाष्टक प्रारंभ होता है, गली-मोहल्लों के चौराहों पर जहां-जहां परंपरा स्वरूप होलिका दहन मनाया जाता है, उस जगह पर गंगाजल का छिड़काव कर प्रतीक स्वरूप दो डंडों को स्थापित किया जाता है।
एक डंडा होलिका का एवं दूसरा भक्त प्रह्लाद का माना जाता है। इसके पश्चात यहां सूखी लकड़ियां और उपले लगाए जाने लगते हैं। जिन्हें होली के दिन जलाया जाता है जिसे होलिका दहन कहा जाता है।