Life Lessons by Lord shiva :शिव पुराण (Shiv Puran) शिवजी से सीखें जीवन जीने का सार

By Tatkaal Khabar / 18-07-2020 03:03:29 am | 22048 Views | 0 Comments
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शिव पुराण में देवों के देव महादेव के स्वरूप उनके रहस्य, महिमा और शिव उपासना का विस्तार से वर्णन किया है। अनादि सिद्ध परमेश्वर महादेव शिव एक ऐसे देव हैं, जिनका उल्लेख शिव पुराण (Shiv Puran) में एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और कई अन्य अलग-अलग रूपों में किया जाता है। आमतौर पर पूरी दुनिया में लोग जिसे भी दैवीय या दिव्य मानते हैं, उसका वर्णन हमेशा अच्छे रूप में ही करते हैं।

यदि आप शिव पुराण (Shiv Puran) पढ़ें तो आपको उसमें कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या बुरे के तौर पर नहीं मिलेगा। उनका जिक्र सुंदरमूर्ति के तौर पर हुआ है, जिसका मतलब सबसे सुदंर है। शिव सबसे सुन्दर हैं, तो बदसूरत भी। यदि वे सबसे बड़े योगी व तपस्वी हैं, तो सबसे बड़े गृहस्थ भी। वे अनुशासित हैं, तो अनुशासन तोड़ते भी हैं। वे महाननर्तक हैं, तो पूर्णतः स्थिर भी। इस दुनिया में देवता, दानव, राक्षस सहित हर तरह के प्राणी उनकी उपासना, करते हैं। शिव के बारे में तमाम ऐसी कहानियां भी हैं, जो कम प्रचलित हैं, पर जिनमें शिव का सार निहित है।

1- शिव को ‘महायोगी’ कहा जाता था क्योंकि उन्होंने ब्रह्मांड की भलाई के लिए घंटों ध्यान लगाया था। इस प्रकार इस तथ्य को उजागर करते हुए कि आप तनावपूर्ण स्थिति में शांत रहकर ही आधी लड़ाई जीत सकते हैं। किसी समस्या को हल करने के लिए यह वास्तव में सबसे अच्छी रणनीति है।

2- शिव जी का एक रूप उनका अर्धनारीश्वर रूप है, जिसमे एक आधा हिस्सा शिव जी का तो आधा हिस्सा  पार्वती जो की उनकी पत्नी है का है। यह शिव जी के पत्नी प्रेम आदर एव महत्त्व को दर्शाता है।

3- एक कथा में शिव ने मृत शरीर पर बैठकर अघोरियों की तरह साधना की है। एक अघोरी के लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं होता। वह एक सजी-संवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक मृत शरीर को। इसकी सीधी-सी वजह है कि वह पूरी तरह से मानसिक विचारों के जाल में नहीं फसना चाहता। घोर का मतलब है भयंकर। इस प्रकार अघोरी का मतलब है जो भंयकरता से परे हो। शिव भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती।

4- शिव ने किसी भी सीमा तक जाकर हर वह काम किया, जिसके बारे में कोई इंसान कभी सोच भी नहीं सकता। यदि किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है, तो वह शिव ही हैं। यदि आप शिव को स्वीकार कर लेते हैं, तो आप जीवन से परे जा सकते हैं। फिर आपको कोई समस्या नहीं रहेगी।

5- उनमें कोई भी चीज घृणा पैदा नहीं कर सकती। वह हर चीज को हर व्यक्ति को अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करूणा या भावनाओं के चलते नहीं करते। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वह जीवन की तरह है। जीवन सहज ही हर किसी को गले लगाता व अपनाता है। इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुन्दर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा ?


6- समस्या सिर्फ आपके साथ है कि आप किसे अपनाएं किसे छोड़ दें। आपकी यह समस्या मानसिक है, न कि जीवन से जुड़ी समस्या। यहां तक कि यदि आपका दुश्मन भी आपके बगल में बैठा है, तो आपके भीतर मौजूद जीवन को उससे भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आपका दुश्मन जो सांस छोड़ता है उसे आप लेते हैं। आपके दोस्त द्वारा छोड़ी गई सांसे आपके दुश्मन द्वारा छोड़ी गई सांसों के समान ही होती हैं। दिक्कत सिर्फ मानसिक स्तर पर है। लेकिन यदि अस्तित्व के स्तर पर देखा जाए तो इसमें कोई समस्या नहीं है।

7- शिव पुराण (Shiv Puran) के अनुसार शिवजी की भेष भूषा केवल त्रिशूल और डमरू से लिए।  भगवान शिव हमेशा धन से दूर रहे। जबकि शिवजी से धनी कौन होगा ?  यदि आप धन और भौतिकवादी चीजों से नहीं जुड़े हैं, तो आप जीवन में कुछ नहीं कर रहे हैं। क्योंकि भौतिकवादी आनंद अस्थायी है। आपको घटनाओं और अनुभवों में अपनी खुशी खोजने की जरूरत है, न कि चीजों में।

8- कहा जाता है शिव जी ने अपने अहंकार को बनाए रखने के लिए अपने त्रिशूल को धारण किया। पर कभी भी उन्होंने अपने अहंकार को अपने से बड़ा नहीं होने दिया और न ही किसी और के अहंकार को सहन किया। आपका अहंकार ही है जो आपको सफल होने से रोकता है। भले ही अहंकार रखो लेकिन कभी भी उसे अपने ऊपर हावी मत होने दो।