कोरोनावायरस लॉकडाउन के बीच ज्येष्ठ माह का पहला बड़ा मंगल आज, यह है इस पर्व का इतिहास व महत्व
बड़ा मंगल या बड़ा मंगलवार भगवान हनुमान की पूजा करने का दिन है। यह लखनऊ में एक अनूठा त्योहार है क्योंकि देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा यहां हनुमान भक्तों के बीच इस उत्सव की अधिक धूम होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान हनुमान की पूजा करने से हमारे जीवन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और धन और समृद्धि आती है। यह त्योहार लखनऊ के गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है और कहा जाता है कि लगभग 400 साल पहले मुगल शासन के दौरान इसकी उत्पत्ति हुई थी। बड़ा मंगल हर साल ज्येष्ठ के महीने के दौरान मनाया जाता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मई और जून के महीने में आता है। अलीगंज में हनुमान मंदिर सभी भक्तों के लिए केंद्र बिंदु है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कहा जाता है कि यह अनुष्ठान वहां शुरू हुआ था।
इतिहास और महत्व
बड़ा मंगल' के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। इतिहासकारों के अनुसार, अलीगंज में हनुमान मंदिर का निर्माण नवाब सआदत अली खान ने 1798 में करवाया था, जब उनकी मां आलिया बेगम की मन्नत पूरी हुई और नवाब को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। आलिया बेगम ने मंदिर बनाने पर जोर दिया और नवाब ने अनुपालन किया। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने हनुमान भक्तों के लिए सामुदायिक भोज आयोजित करके परंपरा को जारी रखा। अलीगंज मंदिर में गुंबद पर एक सितारा और एक अर्धचंद्र है और 'बड़ा मंगल' उत्सव हिंदू-मुस्लिम एकता का एक आदर्श उदाहरण है। लखनऊ में 9,000 से अधिक बड़े और छोटे हनुमान मंदिर हैं, जो आधी रात को अपने दरवाजे खोलते हैं और भक्त पूरे दिन पूजा अर्चना करते रहते हैं।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि शहर में हीवेट पॉलीटेक्निक के पास एक बाग हुआ करता था, जहां रामायण काल में हनुमान आकर ठहरे थे. इस बाग का नाम हनुमान बाड़ी था. मान्यता है कि जब लक्ष्मण और हनुमान जी मां सीता को वन में छोड़ने के लिए बिठूर ले जा रहे थे, तो एक रात उन्होंने इस बाग में काटी थी. नवाबों के काल में इसका नाम इस्लामिक इस्लाम बाड़ी कर दिया गया.
इसी स्थान पर मंदिर बनाने की कथा
बताया जाता है कि एक समय आलिया बेगम के सपने में संकट मोचन हनुमान आए. सपने में उन्होंने बेगम को बताया कि इस बाग में उनकी मूर्ति एक मूर्ति है. इसलिए जब बेगम ने बाद में खुदाई कराई तो कुछ गज नीचे वहां पर प्रतिमा मिली. इस मूर्ति को बेगम ने श्रद्धापूर्वक निकाला और हाथी पर रखवाया. वह बड़े इमामबाड़े के पास हनुमान मंदिर बनाकर उसमें प्रतिमा स्थापित करना चाहती थीं. लेकिन हाथी जब वहां पहुंचा, जहां अभी मंदिर बना हुआ है, तो बहुत कोशिशों के बाद भी उससे आगे न जा पाया और वहीं बैठ गया. बेगम ने माना कि श्री हनुमान यह कहना चाहते हैं कि मंदिर इसी स्थान पर बनाया जाए. ऐसे में मंदिर का निर्माण इसी स्थान पर सरकारी खजाने से कर दिया गया. यही मंदिर अलीगंज का पुराना हनुमान मंदिर है. आप जाएंगे तो देखेंगे कि मंदिर पर आज भी चांद का चिह्न बना होगा.
क्यों मनाया जाता है बड़ा मंगल
बता दें, बड़ा मंगल मनाने के पीछे तीन मुख्य कथाएं हैं-
1. कहा जाता है कि कई साल पहले शहर में एक महामारी आई थी, जिसने काफी लोगों को अपनी चपेट में लिया था. कई लोग इलाज के अभाव में मर गए थे. उस समय कई लोग ऐसे थे जो डर के मारे हनुमान मंदिर में आकर रहने लगे और बच भी गए. वह महीना जेठ का था. उसी दिन से जेठ माह के हर मंगलवार पर भंडारा रख उत्सव मनाया जाने लगा.
2. एक कहानी यह भी है कि एक बार वाजिद अली शाह के परिवार में एक महिला सदस्य बहुत बीमार हो गईं. उनकी बीमारी का इलाज नहीं मिल रहा था और उनका बचना असंभव लगने लगा था. उस समय घरवालों ने मंदिर में दुआ की और वह ठीक हो गईं. वह दिन भी मंगलवार था और महीना भी ज्येष्ठ का था.
3. एक और कथा यह है कि एक समय शहर में इत्र का मारवाड़ी व्यापारी जटमल आया. उसने सोचा कि नवाबों के शहर में इत्र का खूब व्यापार होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उसका इत्र बिका ही नहीं. जब नवाब को पता चला कि व्यापारी मायूस है, तो उन्होंने सारा इत्र खरीद लिया. खुश होकर व्यापारी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और चांदी का छत्र चढ़ाया.
हालांकि, इतिहास के अनुसार और आस्था के अनुसार ये तीन कारण मुख्य माने गए हैं, लेकिन क्या सत्य है यह कह पाना मुश्किल है जिसकी वजह से बड़े मंगल का पर्व शहर में मनाया जाने लगा और आजतक जारी है. इस पर्व में दोनों धर्म शामिल होते हैं.
समय के साथ बदला भंडारे का स्वरूप
जब भंडारे की शुरुआत हुई थी तो गुड़, चना और भुना गेहूं बांटने की परंपरा थी. लेकिन समय के साथ अब आलू-पूड़ी, जलेबी, आइस क्रीम, शरबत, पकौड़े, चाऊमीन, छोले भटूरे और न जाने क्या-क्या बंटने लगा. जेठ महीने की गर्मी में लोगों को भंडारे में ठंडे पानी और शरबत के ग्लास दिए जाने लगे और लोगों को आराम दिलाने लगे. अब यह भंडारा छोटे-बड़े रूप में शहर के हर मोड़ पर लगने लगा. फिलहाल, कोरोना महामारी के समय ये भंडारे समाज सेवा में बदल गए. यह परंपरा केवल लखनऊ में ही है, जहां हिंदू मुस्लिम एक साथ भंडारा करते हैं.