17 जातियों को दलितों में शामिल करने पर HC की रोक

By Tatkaal Khabar / 17-09-2019 03:06:55 am | 11461 Views | 0 Comments
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 अति पिछड़ी जातियों को दलितों में शामिल करने के सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है साथ ही सरकार से 3 हफ्ते में इस मुद्दे पर जवाब भी मांगा है. योगी सरकार के इस फैसले के बाद अति पिछड़ी जातियों में खुशी का माहौल था लेकिन जैसे ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार के इस आदेश को खारिज किया उसके बाद इस पर सियासत शुरू हो गई है.
कभी योगी मंत्रिमंडल में शामिल रहे ओमप्रकाश राजभर ने राज्य सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि पहले तो सरकार ने दिखाने के लिए आरक्षण का आदेश निकाला और अब अपना ही आदमी खड़ा कर हाईकोर्ट में इसे निरस्त करा दिया. ओमप्रकाश राजभर ने चुनौती देते हुए कहा है कि जिस तरीके से सामान्य वर्ग के आरक्षण को एक झटके में लागू किया गया उसी तरीके से राज्य सरकार इन जातियों को 72 घंटे में दलित कैटेगरी में शामिल कराए नहीं तो माना जाएगा कि यह जुमलेबाज सरकार की एक चाल है.

दूसरी ओर चुनाव के पहले एनडीए के साथ आई निषाद पार्टी को भी अदालत के इस फैसले से झटका लगा है. मल्लाह, बिंद, राजभर, केवट, कश्यप जैसी जातियां बहुत पहले से दलित कैटेगरी की मांग कर रही थीं. निषाद पार्टी इस आंदोलन की अगुआ थी. निषाद पार्टी इस समय एनडीए के साथ है और अब इस मुद्दे पर जल्द सरकार से कदम उठाने की मांग कर रही है.

निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने कहा कि ये इस मामले पर कोर्ट को गुमराह किया गया है. उन्होंने कहा कि 17 पिछड़ी जातियां 1961 से राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन के हिसाब से अनुसूचित जाति में हैं, मंझवार की पर्यायवाची केवट/मल्लाह है. शिल्पकार की पर्यायवाची कुम्हार/प्रजापति है. संजय निषाद ने कहा कि कुछ लोग कोर्ट और सरकार को गुमराह कर रहे हैं.

योगी सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि जब हमने इन 17 जातियों को दलित जातियों के समान आरक्षण का लाभ दिया तब भी हाईकोर्ट का आदेश माना था और अब भी कोर्ट का आदेश मानेंगे.

बता दें कि मल्लाह, बिंद, केवट, कश्यप प्रजापति, भर, राजभर, लोहार सरीखी कई अति पिछड़ी जातियां यूपी में पिछड़ी जातियों में है जबकि ऐसी ही जातियां कई राज्यों में दलितों में हैं. इसी आधार पर अदालत ने पहले इन्हें दलित वर्ग में शामिल करने को हरी झंडी दी थी. बाद में वर्तमान दलित जातियों की ओर से इसका विरोध किए जाने और कुछ लोगों के द्वारा कोर्ट में मामला ले जाए जाने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी है.