मोक्षदा एकादशी के व्रत से दूर होंगे सभी दुख, जानें मुहूर्त और कथा
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं. जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) कहा जाता है. मोक्षदा एकादशी बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है. इस दिन उपवास रखकर श्री हरि के नाम का संकीर्तन, भक्तिगीत, नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करें. इस साल मोक्षदा एकादशी 25 दिसंबर (शुक्रवार) को मनाई जाएगी. आपको बता दें कि मोक्षदा एकादशी साल 2020 की अंतिम एकादशी होगी.
मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2020) व्रत मुहूर्त-
एकादशी तिथि प्रारंभ- 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 17 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 54 मिनट तक
मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा
चंपा नगरी में एक प्रतापी राजा वैखानस रहा करते थे. उन्हें सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान था. बहुत प्रतापी एवम धार्मिक राजा थे. इसी कारण प्रजा में भी खुशहाली थी. कई प्रकंड ब्राह्मण उसके राज्य में निवास करते थे. एक दिन राजा ने एक सपना देखा, जिसमें उनके पिता नरक की यातनाएं झेलते दिखाई दिए. ऐसा सपना देखकर राजा बैचेन हो उठे. सुबह होते ही उन्होंने सपने की बात अपनी पत्नी से बताई. राजा ने यह भी कहा इस दुःख के कारण मेरा चित्त कहीं नहीं लग रहा. क्योंकि वे इस धरती पर संपूर्ण ऐशो आराम से हैं और उनके पिता कष्ट में हैं. पत्नी ने कहा कि महाराज आपको आश्रम में जाना चाहिये. राजा आश्रम गए. वहाँ कई सिद्ध गुरु थे, सभी अपनी तपस्या में लीन थे. महाराज पर्वत मुनि के पास गए उन्हें प्रणाम किया और समीप बैठ गए. पर्वत मुनि ने मुस्कुराकर आने का कारण पूछा. राजा अत्यंत दुखी थे उनकी आंखों से अश्रु की धार लग गई. तब पर्वत मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टी से सम्पूर्ण सत्य देखा और राजा के सर पर हाथ रखा और यह भी कहा तुम एक पुण्य आत्मा हो, जो अपने पिता के दुःख से इतने दुखी हो. तुम्हारे पिता को उनके कर्मो का फल मिल रहा हैं. उन्होंने तुम्हारी माता को तुम्हारी सौतेली माता के कारण बहुत यातनाएं दी. इसी कारण वे इस पाप के भागी बने और नरक भोग रहे हैं. राजा ने पर्वत मुनि से इस दुविधा के हल पूछा इस पर मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी व्रत पालन करने एवम इसका फल अपने पिता को देने का कहा. राजा ने विधि पूर्वक अपने कुटुंब के साथ व्रत का पालन किया और अपने पिता को इस व्रत का फल अपने पिता के नाम से छोड़ दिया, जिस कारण उनके पिता के कष्ट दूर हुये और उन्होंने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया. इस प्रकार इस व्रत के पालन से पितरो के कष्टों का निवारण होता हैं.