अघोरी होते है भगवान शिव का परम भक्त, जानियेअघोरी बाबाओं की रहस्यमई जिंदगी
कहां करते हैं अघोरी बाबा पूजा-साधना
कौन से मंदिरों में होता है अघोरियों का अनुष्ठान
अघोरी क्यों मानते हैं भगवान शिव को ही सर्वोच्च
अघोरियों को भगवान शिव का परम भक्त माना जाता है. हिंदू धर्म में कई तरह के साधु-संत होते हैं पर अघोरी इन सबसे अलग हैं. यह सांसारिक और गृहस्थ जीवन से दूर रहकर शिवजी की भक्ति में लीन रहते हैं.
अघोरी और नागाओं की वेशभूषा दूसरे बाबाओं से काफी अलग होती है. वे भगवान शिव की तरह अपने शरीर पर श्मशान की भस्म लगाते हैं और अपना ज्यादातर समय तंत्र साधना करते हुए ध्यान में लीन रहकर बिताते हैं.
अघोरी माता काली और भगवान शिव के भैरव अवतार को अपना गुरु मानते हैं. जिस तरह से भगवान शिव और माता काली अपने शरीर पर मुंडों की माला यानी कपाल धारण करते हैं उसी तरह से अघोरी भी मुर्दो का कपाल पहनते हैं.
माना जाता है कि ये लोग पुनर्जन्म के चक्र से मोक्ष प्राप्त करने के लिए तपस्या में लीन रहते हैं. इसलिए अघोरियों के दर्शन पाना काफी मुश्किल होता है. आमतौर पर ये कभी दिन के उजाले में नजर नहीं आते हैं. पर महाशिवरात्रि और कुंभ जैसे धार्मिक अवसरों पर ये देखे जाते हैं.
अघोरी किसी अन्य हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करने में विश्वास नहीं रखते हैं. उनके अनुसार, भगवान शिव ही परम विध्वंसक हैं और केवल वही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति करवा सकते हैं. अघोरी भगवान शिव को सर्वज्ञ ( सब कुछ जानने वाला), सर्वव्यापी( सब जगह फैला हुआ) और सर्वशक्तिमान( सबसे अधिक शक्तीशाली) रूप को सर्वोच्च मानते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अघोरियों को मृत्यु का कोई भय नहीं है. ऐसा माना जाता है कि अक्सर वे मुर्दों के साथ खाना खाते हैं, साथ सोते हैं और कभी-कभी मृतकों के साथ संभोग भी करते हैं. सबसे पहले अघोरी की उत्पत्ति काशी से हुई थी और तब से ये मंदिरों में फैल गए. आइए जानते हैं ऐसे कुछ मंदिर जो अघोरी तंत्र-साधना के लिए प्रसिद्ध हैं.
अघोर कुटी, नेपाल नेपाल के काठमांडू में स्थित यह अघोर कुटी सबसे प्राचीन स्थानों में से एक है. कहा जाता है कि यह स्थान भगवान राम के अनन्य भक्त बाबा सिंह शाक द्वारा बनाया गया था. तब से अब तक यह कुटी अपनी सामाजिक सेवाओं के लिए प्रसिद्ध है.
काली मठ काली मठ उन शक्तिपीठों में से एक है जहां देवी सती का पिंड गिरा था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यात्रा करने के बाद कई अघोरी अंत में यहां आकर बसते हैं.
तारापीठ, पश्चिम बंगाल पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट में बना यह छोटा सा मंदिर है. यह व्यापक रूप से तांत्रिक मंदिर के रूप में जाना जाता है. देवी सती को यहाँ तारा देवी के रूप में पूजा जाता है. इसके बगल में स्थित श्मशान घाट कई तांत्रिक अनुष्ठानों और अघोरियों का घर है. कहा जाता है कि साधक बामखेपा (पागल संत) इस मंदिर में पूजा करते थे. उन्होंने शमशान घाट में रहकर कई योग और तांत्रिक कलाओं का अभ्यास किया था. तब से कई अघोरी तंत्र-मंत्र का ज्ञान लेने के लिए यहा आते हैं.
कपालेश्वर, मदुरै इस मंदिर को अघोरियों के मंदिर के रूप में जाना जाता है, मंदिर के पास एक आश्रम है जहां अघोरियों के सभी अनुष्ठान किए जाते हैं.
चित्रकूट भगवान दत्तात्रेय (त्रिगुणात्मक त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेव के ही रूप हैं) का जन्म यहीं हुआ था. कहा जाता है कि किशोरावस्था के शुरुआती वर्षों में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था और नग्न, इधर-उधर भटकने लगे थे. ऐसे में सच्चे आत्म की तलाश करने के लिए वे अंत में अघोरी बन गए. उन्होंने वेद और तंत्र को मिलाने में मदद की थी. कई अघोरियाँ यहाँ उनसे प्रार्थना करने और उनके दर्शन के लिए आते हैं.
दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता
प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर दक्षिणेश्वर, कोलकाता, कालीघाट के पास स्थित है. देवी सती की मृत्यु के बाद उनके बाएं पैर की चार अंगुली इस स्थान पर गिरी थी. इसलिए मोक्ष पाने और तांत्रिक साधना करने के लिए कई अघोरी यहां आते हैं.