अखिलेश यादव को JDU का ऑफर! 2024 में विपक्षी एकता के लिए बड़ा दांव
13 मार्च को जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह ने कहा कि साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरेगी. देश में लोकसभा चुनाव होने में अभी एक साल बाकी है लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गई है.
इसी क्रम में समाजवादी पार्टी और जेडीयू ने बीजेपी के खिलाफ एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है. दरअसल ललन सिंह बीते रविवार उत्तर प्रदेश के लखनऊ में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और होली मिलन समारोह कार्यक्रम में पहुंचे हुए थे.
वहां उन्होंने कहा, 'आगामी लोकसभा चुनाव में अगर पार्टी बिहार के पड़ोसी सूबे उत्तर प्रदेश का रुख करती है तो वह समाजवादी पार्टी के साथ जाना पसंद करेंगे. उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी कार्यसमिति को मजबूत करेगी.
ललन सिंह कहते हैं, 'अखिलेश यादव समाजवादी विचारधारा के हैं और हमारे मित्र भी हैं तो हमें अगर उत्तर प्रदेश में गठबंधन करना होगा तो स्वाभाविक तौर पर हम समाजवादी पार्टी के साथ ही करेंगे. समाजवादी पार्टी हमारा वास्तविक सहयोगी हो सकता है.'जेडीयू के साथ गठबंधन करने से सपा को क्या हो सकता है फायदा
उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय यूपी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है और नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय के इकलौते सीएम हैं, जो पिछले डेढ़ दशक के बिहार की सत्ता के धुरी बने हुए हैं. उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द घूमती है. ऐसे में बिहार से सटे हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय काफी निर्णायक भूमिका में है.
एक तरफ जहां कुर्मी वोटरों को साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस तक अपने जोर आजमाइश में जुटी हैं तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार की पार्टी भी इसी वोटर्स के दम पर सूबे में अपनी सियासी एंट्री करना चाहती है.
ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी का कुर्मी समुदाय के सबसे बड़े नेता नीतीश की पार्टी जेडीयू के साथ गठबंधन होता है तो बीजेपी को मिलने वाला कुर्मी वोट बंट सकता और सपा- जेडीयू गठबंधन को इसका फायदा मिलेगा. वर्तमान में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की इस जाति पर अच्छी पकड़ मानी जाती है.
इस गठबंधन से जेडीयू को क्या होगा फायदा
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ सत्ता पर काबिज जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का यूपी विधानसभा में एक भी विधायक नहीं है. हालांकि अगर यह पार्टी सपा के साथ गठबंधन करती है तो इसका साफ कारण यही है कि जदयू यूपी में अपनी जमीन तलाशने के लिए लोकसभा चुनाव में सपा का सहारा ले रही है.
इसके अलावा पिछले कुछ लोकसभा चुनावों में सीएम नीतीश का नाम पीएम मैटेरियल के तौर पर सामने आता रहा है. जेडीयू इस बात से भी अच्छी तरह वाकिफ है कि पीएम का तख्त मिलने का रास्ता 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में मजबूत दखल देने से आसान हो जाएगा. यही कारण है कि कई लोकसभा चुनाव में मतदाताओं से गच्चा खा चुकी जेडीयू इस बार समाजवादी पार्टी का सहारा लेकर यूपी की लोकसभा सीटों में जीत का विकल्प तलाशने में जुट गई है.
अब समझते हैं यूपी में कुर्मी समाज का सियासी असर
उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज की 6 प्रतिशत आबादी है, जो कि ओबीसी का लगभग 35 प्रतिशत है. कुर्मी समुदाय यूपी की लगभग 36 विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. राज्य के 25 जिलों पर इस समाज का प्रभाव है. जबकि 16 जिले ऐसे हैं जो लगभग 12 फीसदी से ज्यादा सियासी ताकत रखते हैं. यह समाज पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड तक, अवध से लेकर रुहेलखंड में किसी भी पार्टी का सियासी खेल बनाने और खराब करने की ताकत रखता है.
यूपी के किन जिलों पर है कुर्मी समाज का प्रभाव
यूपी के कई जिलों में कुर्मी समाज का इतना प्रभाव है कि केवल इनके वोटर्स ही किसी भी पार्टी को जिताने की ताकत रखते हैं. इन जिलों में मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, संत कबीर नगर, महाराजगंज, कुशीनगर, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, प्रयागराज, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर शामिल है.
रविवार को लखनऊ में ललन सिंह ने कहा, "हमने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना के लिए कहा और यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जाति आधारित जनगणना के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. क्षेत्रीय दलों के समर्थन से हमने जाति आधारित जनगणना शुरू की और जारी रखेंगे."