छत्रपति शाहूजी महाराज का व्यक्तित्व अविस्मरणीय हैं - राज्यपाल
छत्रपति शाहूजी महाराज के पास विकास और समन्वय की दृष्टि थी - डाॅ0 लवटे
लखनऊ: 26 जून, 2018
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज छत्रपति शाहूजी महाराज जयंती के अवसर पर किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में छत्रपति शाहूजी महाराज स्मृति मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम का शुभारम्भ द्वीप प्रज्जवलित करके किया। इससे पूर्व राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर स्थापित छत्रपति शाहूजी महाराज की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर महाराष्ट्र के प्रख्यात साहित्यकार एवं कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्राचार्य डाॅ0 सुनील कुमार लवटे, केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल, प्रदेश के श्रम एवं सेवायोजन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, कारागार राज्यमंत्री जय कुमार सिंह जैकी, कुलपति श्रुति सडोलीकर, कुलपति प्रो0 नीलिमा गुप्ता, संस्था के अध्यक्ष रामचन्द्र पटेल, पद्मश्री प्रो0 एस0एन0 कुरील सहित अन्य विशिष्टजन उपस्थित थे। राज्यपाल ने प्राचार्य डाॅ0 सुनील कुमार लवटे द्वारा रचित 20 पुस्तकों का विमोचन किया तथा अपनी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के मराठी संस्करण की प्रति उन्हें भेंट की।राज्यपाल ने कहा कि 1919 में कानुपर के एक कुर्मी अधिवेशन में छत्रपति शाहूजी को ‘राजर्षि’ की पदवी दी गई थी। इस दृष्टि से छत्रपति शाहूजी महाराज को प्रदान की गई राजर्षि उपाधि को आगामी वर्ष 2019 में 100 वर्ष पूर्ण होंगे। शताब्दी वर्ष के अवसर पर कानपुर अधिवेशन की स्मृति में धूमधाम से भव्य समारोह का आयोजन किया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों के सामने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का सपना रखा है जिसका लक्ष्य एक प्रदेश दूसरे प्रदेश की विशेषता जाने। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र से आए आज के कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डाॅ0 लवटे उसी सांस्कृतिक श्रेष्ठता की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
श्री नाईक ने शाहूजी महाराज को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि छत्रपति शाहूजी महाराज का व्यक्तित्व अविस्मरणीय हैं जिस प्रकार से उन्होंने शिक्षा की ज्योति को आगे बढ़ाने का काम किया है उसका अनुसरण होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में महिलाओं की शिक्षा पर चर्चा करते हुए राज्यपाल ने बताया कि 15.60 लाख छात्र-छात्राओं को उपाधियाँ प्रदान की गई हैं जिसमें 51 प्रतिशत छात्राएं हैं तथा 66 प्रतिशत स्वर्ण, रजत एवं कांस्य पदक छात्राओं को मिले हैं। उन्होंने कहा कि महिला शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का चित्र बदल रहा है।
राज्यपाल ने छत्रपति शाहूजी महाराज की जन्मतिथि सुधारने की बात बताते हुए कहा कि परम्परा एवं इतिहास की गलती को सुधारने का प्रयास होना चाहिए। राज्यपाल ने बताया कि उत्तर प्रदेश में छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्मदिवस 26 जून के स्थान पर 26 जुलाई को मनाया जा रहा था। इसका संज्ञान लेते हुए महाराष्ट्र सरकार से समन्वय करके उन्होंने 26 जून को जन्मदिवस घोषित कराने का कार्य किया। इसी प्रकार अपने मुंबई भ्रमण में उन्होंने हवाई अड्डे पर छत्रपति शिवाजी महाराज के चित्र पर उल्लिखित जन्मतिथि व बाबासाहेब डाॅ0 भीमराव आंबडेकर का गलत नाम लिखे जाने का संज्ञान लेकर उसे भी सुधारने का कार्य किया। उन्होंने कहा कि ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ जीवन का शाश्वत संदेश है उससे प्रेरणा लेकर निरंतर आगे बढ़ने से सफलता मिलती है।
मुख्य वक्ता एवं मराठी साहित्यकार डाॅ0 सुनील कुमार लवटे ने अपने जीवन की परते खोलते हुए बताया कि ‘मेरा बचपन अनाथालय में गुजरा है। पढ़ने के लिए विद्यालय गया, पहले ही दिन शिक्षक ने मेरी जाति के बारे में पूछा। मैंने कहा कि मैं अनाथाश्रम से हूँ, मुझे कुछ नहीं मालूम। शिक्षक ने कहा जाओ पीछे बैठो। आज मेरी 20 किताबों का लोकार्पण राज्यपाल ने किया। सोचा भी नहीं था कि कभी राजभवन में ठहरूंगा और राज्यपाल मेरी पुस्तकों का विमोचन करेंगे। मेरी जाति और धर्म मानवता है।’ आजादी के 70 साल होने के बाद भी हम छोटे-छोटे मतभेदों में घिरे हैं। नई सोच से देश को देखने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि विविधता हमारी पहचान है। हमें मिलकर देश को समृद्ध करने के लिए काम करना चाहिए।
डाॅ0 लवटे ने कहा कि छत्रपति शाहूजी महाराज दूरदर्शी राजा थे जिन्होंने शिक्षा पर जोर दिया। आज कोल्हापुर में सबसे ज्यादा शिक्षित आबादी है। हर बड़ा व्यवसायी अपने ब्रांड की लांचिंग कोल्हापुर से करता है। यह शाहूजी की दृष्टि की निशानी है। 1912 में छत्रपति शाहूजी महाराज ने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को प्रारम्भ किया था। विद्यालय में दाखिला न दिलाने वाले माता-पिता पर शाहूजी महाराज ने जुर्माना भी रखा था। उनका मानना था कि ‘बच्चें माॅ-बाप के हैं पर प्रजा हमारी है।’ शाहूजी ने वंचित लोगों के उत्थान के लिए आरक्षण को जरूरी बताया था। उन्होंने कहा कि छत्रपति शाहूजी महाराज के पास विकास और समन्वय की दृष्टि थी।
अपने सम्बोधन में डाॅ0 लवटे ने कहा कि बीसवीं सदी के प्रथम दो दशकों में छत्रपति शाहू जी महाराज ने समाज के सभी जाति, धर्म के छात्रों की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध करने हेतु बीस छात्रावासों की स्थापना की। इनमें जैन, मुस्लिम, ईसाई, लिंगायत धर्मीय छात्रावास जैसे थे, वैसे मराठा, सुनार, बढ़ई, दर्जी, ब्राह्मण, दलित, नाई, क्षत्रिय आदि जाति के थे जिसके कारण विभिन्न धर्म एवं जातियों के छात्रों में आपसी सद्भाव बढ़ा। उन्होंने कहा कि छत्रपति शाहू जी महाराज ने यह कानून आज से लगभग 120 वर्ष पूर्व लागू कर अपनी धार्मिक आस्था का परिचय दिया था। सभी धर्मों के प्रति हमदर्दी जताने वाले राजर्षि शाहू जी महाराज ने मुस्लिमों की मस्जिदों, ईसाईयों को तथा कब्रस्तान को जगह मुहिया कराई। 26 जुलाई, 1902 में उन्होंने अपनी रियासत में नौकरी में 50 प्रतिशत आरक्षण दलितों के लिए रखकर एक सामाजिक क्रांति का नया पर्व आरंभ किया। डॉ0 बाबासाहब आंबेडकर नेे अपने अनेक पत्रों में छत्रपति शाहू जी महाराज के कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा की थी।
डाॅ0 लवटे ने कहा कि राजर्षि शाहू जी महाराज की मृत्यु मई 1922 में हुई। चार वर्ष बाद अर्थात् वर्ष 2022 में हम भारतवर्ष की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाठ मनायेंगे। यह हमारी आजादी का ‘अमृत महोत्सव वर्ष’ रहेगा। साथ ही वह ‘छत्रपति शाहू जी महाराज स्मृति शताब्दी वर्ष’ के रूप में भी मनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि दोनों की अपनी-अपनी महत्ता एवं प्रासंगिकता है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने कहा कि छत्रपति शाहूजी महाराज ने सही मायने में सामाजिक न्याय की आधारशिला रखी। शिक्षा के बगैर किसी समाज का उत्थान नहीं हो सकता। शाहूजी महाराज ने बाबासाहब को उच्च शिक्षा के लिए सहयोग भी किया। उन्होंने कहा कि शाहूजी महाराज के विचारों को जीवन में उतारें और उसे सिर्फ समारोह तक सीमित न रखें।
प्रदेश के श्रम एवं सेवायोजन मंत्री श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि शाहूजी महाराज कुशल शासक और युगदृष्टा थे जिन्होंने सामाजिक न्याय को स्थापित करने और जातीय भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया। वे अंतिम व्यक्ति का दर्द महसूस करते थे। उन्होंने कहा कि शाहूजी महाराज ने कहा था कि बाबासाहब भविष्य में दलित हितैषी के रूप में स्थापित होंगे।
कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन छत्रपति शाहूजी महाराज स्मृति मंच के अध्यक्ष श्री रामचन्द्र पटेल ने दिया तथा स्वागत उद्बोधन पद्मश्री प्रो0 एस0एन0 कुरील ने दिया। इस अवसर पर विशिट सेवा के लिए कई चिकित्सकों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित भी किया गया।