अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि न हो याद तो इस दिन करें पूजा, जान लें इसका नियम
पुरखों की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष में स्थान मिले इसके लिए पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध कर्म और पिंडदान किए जाते हैं. यह कार्य करने के लिए हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक सदियों पहले से निश्चित है. इसमें जी भी पूर्वजों की मृत्यु की तिथि हमें पता होती है उसके हिसाब से तर्पण श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया जाता है. लेकिन जिन पूर्वजो की हमें मृत्यु पता नहीं होती है. तो उसको लेकर असमंजस की स्थिति रहती है. उन सभी पितरों या पूर्वजों का पितृ मोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया जाता है.
आश्विन महीने के भाद्र पक्ष की अमावस्या को पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस बार पितृ मोक्ष अमावस्या 14 अक्टूबर दिन शनिवार को है. किस दिन माता-पिता के अलावा दादा-दादी पर दादा परदादा और उनके ऊपर के पूर्वजों के साथ जिनकी भी मृत्यु हुई है और तिथि पता नहीं हैं. उनका श्राद्ध कर्म या पिंडदान किया जा सकता है.
गरुण पुराण में इसका वर्णन मिलता
सागर के ज्योतिषाचार्य पंडित अनिल कुमार पांडे ने कहा कि यह पितृपक्ष चल रहा है इस पक्ष में हम अपने पितरों को जो हमसे दूर चले गए हैं. हम उनको याद करते हैं इसका पूरा वर्णन गरुड़ पुराण में दिया हुआ है. अमावस्या के लिए विशेष रूप से वर्णन गरुण पुराण की प्रेत मंजरी के 45 में अध्याय में है. जैसे मान लीजिए कोई घर से बाहर गया और उसकी मृत्यु हो गई. अब मालूम नहीं है कि कब उसकी मृत्यु हुई है तो ऐसे अपने पूर्वज को याद करने के लिए या उसके बारे में हमें थोड़ा सा मालूम तो है आभास तो है.लेकिन हम पक्के नहीं है की किस तारीख में उसकी मृत्यु हुई है. ऐसे पितरों को याद करने के लिए पितृ मोक्ष अमावस्या का सहारा लेते. पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन हम उन किसी भी पितृ का पूजन या श्राद्ध कर्म कर सकते हैं जिनके बारे में हमको मालूम नहीं है कि उनकी डेथ कब हुई है.
पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन कैसे करें अपने पितरों का पूजन
अपने पुरखों का स्मरण करने वाले इस दिन तर्पण करने के लिए साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए फिर अपने जातक के लिय जलाशयों पर जाकर या घरों के आंगन या छत पर बैठकर हाथ में जल, कुशा, अक्षत, तिल आदि से पितरों के निमित्त तर्पण करना चाहिए.इसके बाद चावल का गोला बनाकर नदी या जलाशय के किनारे पर आचार्य के निर्देशन में पिंडदान की विधि विधान से पूजन कर अपनी माता के लिए याद करें.इसके अलावा घर पर श्राद्ध कर्म करें जिसमें खीर पूरी सब्जी खट्टा मीठा या जो उनके लिए पसंद था वह भी बना सकते हैं. फिर 4 भाग उस भोजन से निकाले. जो कौवा, गाय, स्वान( कुत्ता), अभ्यागात या अतिथि के लिय दें. अग्नि में 7 आहुतियां( 3 घी+3 शक्कर+1 धूप) की दे. दक्षिण दिशा में सरसों के तेल से एक मिट्टी का दीपक जलाएं