सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राष्ट्रपति विधेयकों पर 90 दिन में फैसला करें

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के अधिकार को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. अपनी तरह के पहले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश के राष्ट्रपति के अधिकार असीमित नहीं है. राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा. निर्धारित समय सीमा में मंजूरी न देने पर राष्ट्रपति को भी कारण बताने होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तमिलनाडु के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल द्वारा रोके जाने के मामले पर सुनवाई के बाद दिया है. फैसला तो 8 अप्रैल को ही आ गया था लेकिन उसे 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया.
राष्ट्रपति के पास पॉकेट वीटो नहीं
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने साफ कर दिया है कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है और उसे राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर एक महीने में फैसला करना होगा और अगर राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजता है तो राष्ट्रपति को तीन महीने में उस पर फैसला करना होगा. राष्ट्रपति किसी बिल को अनंत समय तक नहीं लटका सकता. पॉकेट वीटो का अधिकार किसी के पास नहीं है. दरअसल तमिलनाडु के राज्यपाल एन रवि ने 10 बिल रोक लिये थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मनमाना और अवैधानिक करार दिया है. उसी क्रम में राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भी समय सीमा तय कर दी है.
राष्ट्रपति-राज्यपाल तय समय सीमा में निर्णय लें
दरअसल केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार होने होने पर कई बार राजनीतिक टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है. राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है इसलिए उसके फैसले भी उसी के अनुसार होते हैं. टकराव होने पर राज्यपाल के पास सबसे बड़ा हथियार होता है राज्य विधानसभा की ओर से पास विधेयकों को राष्ट्रपति की सलाह के लिए रोक लेना. अभी तक न तो राज्यपाल की मंजूरी या इनकार के लिए कोई समय सीमा थी और न ही राष्ट्रपति के लिए.
तमिनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने वहां की विधानसभा द्वारा पारित 10 बिलों को रोक लिया था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया तो कोर्ट ने दो टूक फैसला दिया कि यह असंवैधानिक है. राज्यपाल को बिल पर एक महीने में फैसला करना होगा. वह चाहें स्वीकार करे या अस्वीकार. इसी तरह यदि राज्यपाल किसी बिल को सलाह के लिए राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति को तीन महीने में फैसला लेना होगा. चाहे वो मंजूरी दें या खारिज कर दें.
राष्ट्रपति मंजूरी दें या रिजेक्ट करें
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के अधिकार न्यायिक समीक्षा के अधीन है. अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब राज्यपाल किसी विधेयक को सुरक्षित रखता है, तो राष्ट्रपति उसे या तो मंजूरी दे सकता है या अस्वीकार कर सकता है. संविधान में बेशक इस निर्णय के लिए कोई समयसीमा नहीं है लेकिन राष्ट्रपति के पास ‘पॉकेट वीटो’ नहीं है लिहाजा उन्हें या तो मंजूरी देनी होती है या उसे रोकना होता है. यह काम तीन महीने में करना होगा.अगर राष्ट्रपति किसी विधेयक पर फैसला लेने में तीन महीने से अधिक समय लेते हैं, तो उन्हें देरी के लिए वाजिब वजह बतानी चाहिए.
तय समयसीमा में कार्रवाई जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि कार्यपालिका जज की तरह काम नहीं कर सकती. कानूनी मुद्दों को अनुच्छेद 143 के तहत निर्णय के लिए शीर्ष अदालत में भेजना चाहिए.