Pope Francis / पीएम मोदी समेत दुनिया भर के नेताओं ने पोप फ्रांसिस के निधन पर जताया दुख

Pope Francis: विश्व भर में करोड़ों लोगों के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक और करुणा के प्रतीक, पोप फ्रांसिस का सोमवार सुबह 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वेटिकन स्थित कासा सांता मार्टा में सुबह 7:35 बजे (स्थानीय समय) उन्होंने अंतिम सांस ली। कार्डिनल केविन फेरेल ने उनके निधन की आधिकारिक घोषणा की। पोप डबल निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और गुर्दे की जटिल बीमारियों से लंबे समय से जूझ रहे थे।
14 फरवरी 2025 को उन्हें रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती किया गया था, और यद्यपि मार्च में उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी, उनकी हालत लगातार नाजुक बनी रही। विडंबना यह रही कि अपने जीवन के अंतिम दिन, 20 अप्रैल को, उन्होंने सेंट पीटर स्क्वायर में ईस्टर संडे का आशीर्वाद दिया और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से मुलाकात की—जो उनके अदम्य साहस और सेवा भावना की मिसाल है।
विश्व नेतृत्व ने जताया शोक, साझा की श्रद्धांजलि
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पोप की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, "ब्यूनस आयर्स से लेकर रोम तक, पोप फ्रांसिस ने हमेशा चाहा कि चर्च गरीबों की आशा और खुशी का स्रोत बने। उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है: प्रकृति और मनुष्यता के बीच एकता। यह आशा उनके बाद भी जीवित रहेगी।"
अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी अपनी संवेदनाएँ प्रकट कीं। उन्होंने कहा, "कल उन्हें देखकर खुशी हुई, लेकिन स्पष्ट था कि वे बेहद बीमार थे। मैं उन्हें उस दिन के लिए याद रखूंगा जब कोविड के दौरान उन्होंने हमें दिलासा देने वाले शब्द दिए थे। उनके शब्दों में गहराई और मानवता की गूंज थी।"
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, "पोप फ्रांसिस को दुनिया हमेशा करुणा, विनम्रता और आध्यात्मिक साहस के प्रतीक के रूप में याद रखेगी। उन्होंने गरीबों और पीड़ितों की सेवा को जीवन का ध्येय बना लिया था।"
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने भी भावभीनी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, "पोप फ्राँसिस जीसस के घर लौट गए हैं। वे एक ऐसे पादरी थे जो कभी नहीं डगमगाए—चाहे जीवन कितना भी कठिन हो। उन्होंने हमें एक नया मार्ग दिखाया: वह जो नष्ट नहीं करता, बल्कि पुनर्निर्माण करता है।"
पोप फ्रांसिस की विरासत: एक युग का अंत
पोप फ्रांसिस, जिनका जन्म अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में हुआ था, 2013 में कैथोलिक चर्च के 266वें पोप के रूप में चुने गए। वे पहले गैर-यूरोपीय पोप थे और पहले जेसुइट भी जिन्होंने यह सर्वोच्च पद संभाला। अपने पूरे कार्यकाल में वे समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ बने, जलवायु परिवर्तन, शरणार्थी संकट, LGBTQ+ समुदाय और अंतर-धार्मिक संवाद पर उनके विचार चर्च की पारंपरिक सीमाओं से आगे निकल गए।
उनकी सरल जीवनशैली, विनम्रता, और दृढ़ धार्मिक आस्था ने उन्हें न केवल कैथोलिक जगत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक नैतिक मार्गदर्शक बना दिया।