अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट की दो टूक- गुरुवार को दलीलें खत्म करे हिंदू पक्ष, हमारे पास वक्त नहीं

By Tatkaal Khabar / 30-09-2019 06:25:41 am | 9832 Views | 0 Comments
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Delhi :  सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई चल रही है. सोमवार को इस मामले की सुनवाई का 34वां दिन था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुरुवार भोजनावकाश से पहले तक हिन्दू पक्षकार अपनी दलीले खत्म कर लें. निर्मोही अखाड़ा को गुरुवार दोपहर बाद एक घंटा मिलेगा. मुस्लिम पक्षकार धवन शुक्रवार सुबह सूट 4 पर बहस शुरू करेंगे. कोर्ट ने कहा कि अब सबको अलग-अलग सुनने का समय नहीं. आप हमसे वो चीज़ (समय) मांग रहे हो जो हमारे पास है ही नहीं.

राम लला विराजमान मध्यस्थता प्रक्रिया से अलग

राम लला विराजमान के वकीलों ने सोमवार को सुप्रीम कोर्टSC में निर्मोही अखाड़ा को गुरुवार दोपहर बाद एक घंटा मिलेगामुस्लिम पक्षकार धवन शुक्रवार सुबह सूट 4 पर बहस शुरू करेंगे

को सूचित किया कि वह अयोध्या विवाद मामले में मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे हैं. कोर्ट मौजूदा समय में मामले पर रोजाना सुनवाई कर रही है, जिसके 18 अक्टूबर तक या उससे पहले पूरा हो जाना है. सुनवाई के 33वें दिन राम लला विराजमान की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील सी.एस.वैद्यनाथन ने अदालत के समक्ष बहस में कहा कि "हम मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे हैं..सभी तरह की रिपोर्ट आसपास चल रही है. हम बहुत स्पष्ट करना चाहते हैं कि हम भाग नहीं ले रहे हैं."

वहीं राम लल्ला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के पराशरन ने दलीलें दीं. उन्होंने सु्प्रीम कोर्ट में कहा कि हम दिव्यता को क्यों मानते हैं? ये एक जरूरत थी. देवत्व के बिना हिंदू धर्म नहीं हो सकता. ईश्वर एक है. हालांकि रूप भिन्न हो सकते हैं. प्रत्येक मूर्ति का एक अलग रूप है. एक उद्देश्य है.

भगवान का रूप क्या है?

पराशरन ने कहा कि वैसे आदमी आधे आदमी और आधे जानवर के रूप में नहीं आ सकता. भगवान के लिए इस तरह के रूप में प्रकट होना संभव है. विभिन्न देवताओं की पूजा के विभिन्न रूप हैं. भगवान का रूप क्या है? कोई नहीं जानता. छोटे से छोटा और सबसे बड़ा से भी बड़ा. उपनिषदों के हवाले से यह तर्क दिया जाता है कि जब भगवान आकारहीन और निराकार होते हैं तो साधारण उपासकों के लिए एक रूप या मूर्ति के अभाव में ईश्वर का अनुभव करना कठिन होता है.

वरिष्ठ वकील ने कहा कि भगवान को अपने लोगों की रक्षा के लिए संरक्षित करना होगा. कोई भी मूर्ति का मालिक नहीं है. इसका विश्वास है जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह कभी पैदा नहीं होता और वह कभी नहीं मरता. उसकी कोई शुरुआत और अंत नहीं है. लोगों को पूजा करने के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए अभिव्यक्ति को बनाए रखने की आवश्यकता थी. दिव्यता के बाद ही मूर्ति पवित्र हो जाती है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में 5 अगस्त से इस मामले की सुनवाई जारी है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले की सुनवाई के लिए 18 अक्टूबर तक का समय दिया है.सूत्रों का कहना है कि अगर मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी नहीं हुई तो मामला लंबा खिंच सकता है.