इस अप्सरा से हुआ था कई महान ऋषियों की संतानों का जन्म

रुप लावण्यता, सौंदर्य और अपनी लुभावनी अदाओं से तपस्वी और सन्यासियों तक की तपस्या भंग करने वाली सुंदरियों की बात होती है ,तो अपस्राओं का नाम जेहन में आता है। स्वर्ग की इन अप्सराओं की मोहक अदाओं से कोई नहीं बच पाया। ऐसी ही एक अपनी तपस्या के बल पर ऋषियों की तपस्या भंग करने वाली अप्सरा घृताची थी। अपस्रा घृताची माघ मास में अन्य गणों के साथ सूर्य पर स्थित होती है।
महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास अप्सरा घृताची को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए थे। घृताची और वेदव्यास से शुक्रदेव का जन्म हुआ। इसके बाद महर्षि च्यवन के पुत्र प्रमिति घृताची के प्रेमपाश में पड़ गए और इन दोनों से रूरू नाम के पुत्र का जन्म हुआ। इसके बाद कन्नौज के नरेश कुशनाभ से अप्सरा घृताची के प्रेम संबंध स्थापित हुए और इन दोनों को सौ कन्याओं की प्राप्ति हुई।
एक बार जब देवराज इंद्र को भरद्वाज ऋषि के तप से खतरा महसूस हुआ तो उन्होंने घृताची को महर्षि भरद्वाज की तपस्या भंग करने के लिए पृथ्वीलोक पर भेजा। जब घृताची का पृथ्वी पर आगमन हुआ उस वक्त महर्षि भरद्वाज गंगा स्नान कर आश्रम लौट रहे थे।
भरद्वाज ऋषि की नजर घृताची पर पड़ी। वह उस समय गंगा स्नान कर अपने भीगे हुए वस्त्रों के साथ बाहर निकल रही थी। महर्षि ने जब एक नजर घृताची पर डाली तो वे स्वयं पर नियंत्रण नही कर पाए और घृताची के मोहजाल में उलझ गए और खुद को नियंत्रण करने के लाख प्रयासों के बावजूद अप्सरा घृताची के प्रेम में फंस गए।



