योग लोक कल्याण का माध्यम: मुख्यमंत्री
भारत की योग परम्परा मानवतावादी परम्परा है
योग संकीर्णताओं से परे है और मानवता को बढ़ावा देता है
जिन मार्गों और कार्यों से संतुलन मिल जाए, वही योग है
योग से अंदर की बुराइयों को दूर करने में मदद मिलती है
योग क्रियाओं के नियमित अभ्यास से शरीर स्वस्थ होता है और जीवन संतुलित रहता है
लखनऊ: 20 जून, 2018
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने योग को लोक कल्याण का माध्यम बताते हुए कहा है कि भारत की योग परम्परा मानवतावादी परम्परा है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर पूरी दुनिया के 192 देश योग का प्रदर्शन करेंगे। एक साथ इतने देशों का योग के साथ आगे बढ़ना यह दर्शाता है कि योग संकीर्णताओं से परे है और मानवता को बढ़ावा देता है। उन्होंने सबके जीवन में योग के माध्यम से खुशहाली की शुभकामना देते हुए कहा कि योग का मतलब जीवन में संतुलन लाना है। जिन मार्गों और कार्यों से संतुलन मिल जाए, वही योग है।
मुख्यमंत्री जी आज जनपद गोरखपुर के गोरक्षनाथ मंदिर में भारतीय संस्कृति में योग, अध्यात्म एवं शिक्षा विषय पर आयोजित कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत के लिए योग कोई नया नाम नहीं है। यहां इसको कई रूपों में जाना जाता है। भगवान शिव से चली परम्परा को ऋषियों ने आगे बढ़ाया और दुनिया में आज इसका जो महत्व बढ़ा है, वह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की देन है। कई देश योग को आत्मसात कर रहे हैं। आसन और प्राणायाम योग के अंग हैं। उन्होंने कहा कि भारत में हर व्यक्ति योग को स्वीकार करता है, बस इसकी परिभाषा अलग-अलग है। योग से हमें अपने अन्दर की बुराइयों को दूर करने में मदद मिलती है। योग क्रियाओं के नियमित अभ्यास से शरीर स्वस्थ होता है और जीवन संतुलित रहता है।
इस अवसर पर कटक उड़ीसा से आये महन्त श्री शिवनाथ महाराज ने योग के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि योग के क्षेत्र में गुरू गोरखनाथ एवं महर्षि पतंजलि ने चार योग के बारे में लोगों को बताया था। महन्त श्री शिवनाथ महाराज ने एक-एक योग के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी।
इस अवसर पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष प्रो0 यू0पी0 सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि योग विद्या को सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दृष्टि से पहचान दिलाने में गोरखपुर का काफी योगदान है। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल किताबों से नहीं पूरी होती है। शारीरिक, बौद्धिक, भावात्मक, आध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक-ये शिक्षा के पांच आयाम भी हैं। इनके बारे में भी लोगों को जानकारी देनी चाहिए तभी शिक्षा पूर्ण होती है।
इस अवसर पर कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, अन्य जनप्रतिनिधिगण तथा शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।