भूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले देश के चार बड़े संस्थानों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ से भी ज्यादा हो सकती है 1905 में कांगड़ा में आए भूकंप की तीव्रता भी 7.8 मापी गई थी, जिसमें जान-माल की व्यापक तबाही हुई थी। इसके बाद साल 2015 में हिमालयी देश नेपाल में 7.8 के वेग के भूकंप से मची तबाही की याद तो लोगों के जेहन में अभी ताजा ही है।वरिष्ठ वैज्ञानिक और जियोफिजिक्स के प्रमुख डॉ। सुशील कुमार ने बताया कि इसभूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले देश के चार बड़े संस्थानों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ से भी ज्यादा हो सकती है 1905 में कांगड़ा में आए भूकंप की तीव्रता भी 7.8 मापी गई थी
अध्ययन को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों ने साल 2004 से 2013 के बीच कुल 423 भूकंपों का अध्ययन किया। अपने अध्ययन को पुख्ता करने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ने हिमालय में विभिन्न जगहों पर 12 ब्रांडबैंड सीस्मिक स्टेशन लगाए और कई सालों के अंतराल में इन स्टेशनों पर रिकार्ड भिन्न-भिन्न प्रकार के भूकंपों का विश्लेषण किया। साल 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में आए भूकंपों की विभीषिका झेल चुके उत्तराखंड की राज्य सरकार ने कई जगह आईआईटी रुड़की की के सहयोग से अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए हैं।डॉ. सुशील ने बताया कि राज्य सरकार के साथ भूकंप की तैयारियों को लेकर हाल में हुई एक बैठक के दौरान उन्होंने सुझाव दिया है कि हर गांव में एक भूकंप रोधी इमारत बनवा दी जाये जहां भूकंप की चेतावनी मिलने या भूकंप आने के बाद लोग रह सकें। उन्होंने कहा, ”भूकंप आने के बाद सबसे बड़ी समस्या घरों और उन तक पहुंचने वाले रास्तों के क्षतिग्रस्त होने की होती है । हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए इन इमारतों में हर समय खाद्य सामग्री, पानी और कंबल उपलब्ध रहना चाहिए ताकि लोग राहत दल के आने तक आसानी से अपना गुजारा कर सकें।