सरकार सॉफ्टवेयर पेगासस को लेकर विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए फोन टेपिंग तथा जासूसी के आरोपों को किया सिरे से खारिज
संसद के मॉनसूत्र सत्र में जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस को लेकर हंगामा जारी है। सरकार सॉफ्टवेयर पेगासस को लेकर विपक्षी दलों द्वारा लगाए जा रहे फोन टेपिंग तथा जासूसी के आरोपों को सिरे से खारिज तो कर रही है लेकिन संदेह के बादल अभी छाये हुए ही हैं। गौरतलब है कि कई देशों के मीडिया संस्थानों, एमनेस्टी इंटरनैशनल और कई साइबर-सुरक्षा संगठनों की एक साझा जांच में कई देशों की सरकारों द्वारा अपने नागरिकों की गैरकानूनी ढंग से निगरानी करने का सनसनीखेज मामला सामने आने के बाद हड़कंप मच गया है। इस जांच में जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के निशाने पर रहे लोगों की पड़ताल की गई। इसमें भारत के भी करीब 40 पत्रकार, कुछ सांसद, न्यायाधीश एवं अन्य प्रमुख लोगों की निगरानी किए जाने की बात पता चली है। अपने फोन को जांच के लिए देने पर सहमत हुए सात भारतीय नागरिकों के फोन पेगासस सॉफ्टवेयर से संक्रमित पाए गए हैं। पेगासस इजरायली फर्म एनएसओ द्वारा विकसित एक सॉफ्टवेयर है जिसका इस्तेमाल निगरानी रखने के लिए किया जाता है। इसे किसी भी व्यक्ति के मोबाइल फोन में चोरी-छिपे डाउनलोड कर दिया जाता है जिसके बाद उस फोन के सारे डेटा तक पहुंच हो जाती है और उस व्यक्ति के फोन पर होने वाली सारी बातचीत को सुना, चैट को पढ़ा एवं ब्राउजिंग को खंगाला जा सकता है। पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के पहले उनके फोन की निगरानी पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये किए जाने की बात सामने आने के बाद यह चर्चा में आया था। इसे बनाने वाली फर्म एनएसओ कहती है कि वह सिर्फ सरकारी एजेंसियों को ही इसकी बिक्री करती है और इस बिक्री अनुबंध में यह प्रावधान भी रखा जाता है कि इसका इस्तेमाल सिर्फ संदिग्ध अपराधियों या आतंकी गतिविधियों के मामलों में ही किया जा सकता है। लेकिन व्यवहार में इस प्रावधान को लागू नहीं किया जा सकता है। एक बार सॉफ्टवेयर मिल जाने के बाद खरीदार उसे अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि एनएसओ संभावित खरीदारों की पुष्टि कर यह परख सकता है कि खरीदने की मंशा रखने वाली एजेंसी सरकारी है या नहीं। वैसे एनएसओ अपने खरीदारों की सूची नहीं देती है। उसने 40 देशों में अपने 60 ग्राहक होने का दावा किया है। एनएसओ के मुताबिक उसके सॉफ्टवेयर को मुख्य रूप से कानून लागू करने वाली एवं खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ सेना भी इस्तेमाल करती है। यह बेहद परिष्कृत सॉफ्टवेयर है जिसे दूर से ही किसी व्यक्ति के मोबाइल फोन में इंस्टॉल किया जा सकता है। इस दौरान उस व्यक्ति को पता भी नहीं चल पाता है कि उसका फोन स्पाईवेयर की चपेट में आ चुका है। दरअसल अधिकांश निगरानी सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करने के लिए उस फोन तक पहुंच होना जरूरी है या फिर फिशिंग का सहारा लिया जाता है। फिशिंग के दौरान कोई संदेश या व्हाट्सऐप या ई-मेल चिह्नित व्यक्ति के मोबाइल पर एक खास लिंक के साथ भेजा जाता है और जब वह व्यक्ति उस लिंक पर क्लिक करता है तो उसके फोन पर सॉफ्टवेयर डाउनलोड हो जाता है। पेगासस के मामले में भी ऐसा ही होता है। एक बार इंस्टॉल हो जाने के बाद पेगासस को उस फोन पर तमाम मंजूरियां हासिल हो जाती हैं जिसके दम पर वह फोन की लोकेशन, ई-मेल की निगरानी, फोन में दर्ज संपर्कों तक पहुंच, स्क्रीनशॉट लेने, मीडिया, इंस्टैंट मेसेज एवं एसएमएस को देखने, ब्राउजिंग हिस्ट्री पता करने और फोन के माइक एवं कैमरा को भी अपने नियंत्रण में लेने में सफल हो जाता है। जरूरी जानकारियां जुटाने के बाद पेगासस को दूर से ही डिलीट भी किया जा सकता है। एक बार डिलीट हो जाने के बाद यह पता कर पाना बेहद मुश्किल है कि उस फोन पर कभी पेगासस इंस्टॉल हुआ था। एक और खासियत यह है कि इस सॉफ्टवेयर की मदद से लक्षित व्यक्ति के फोन पर फर्जी संदेश एवं ई-मेल प्लांट भी किए जा सकते हैं। इसी कारण कुछ लोग यह संदेह जताते रहे हैं कि भीमा कोरेगांव मामले में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को फंसाने के लिए इसी तरह से फर्जी सबूत गढ़े गए हैं।
कांग्रेस ने मांग की है कि सारे मामले की जांच की जाए क्योंकि राहुल गांधी सहित कई केंद्रीय मंत्रियों की जासूसी किए जाने की बात सामने आ रही है। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं सहित सॉफ्टवेयर पेगासस को लेकर जो आरोप सरकार पर लगे हैं भाजपा ने उन्हें सिरे से खारिज करते हुए विपक्षी दलों की मांग को अस्वीकार कर दिया है। सरकार ने आरोपों को देश के विकास में बाधा डालने वाला कहा है।
जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस को लेकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पा रही है।