Big Breaking : स्कूल मर्जर पर हाईकोर्ट की हरी झंडी, सीतापुर के 210 में से मात्र 14 विद्यालयों में यथास्थिति

By Tatkaal Khabar / 24-07-2025 02:01:52 am | 800 Views | 0 Comments
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Lucknow / Prayagraj : लखनऊ/प्रयागराज, 24 जुलाई : उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के 50 से कम छात्र संख्या वाले परिषदीय स्कूलों के समेकन (मर्जर) के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है। स्कूल मर्जर पर हाईकोर्ट ने हरी झंडी दिखायी है, सीतापुर के 210 में से मात्र 14 विद्यालयों में यथास्थिति बनी हुई है। आदेश राज्य सरकार की उस महत्वाकांक्षी योजना को बल देता है जिसके तहत हजारों छोटे स्कूलों को शैक्षिक गुणवत्ता, संसाधनों और प्रशासनिक कुशलता की दृष्टि से एकीकृत किया जाना है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की उस मांग को खारिज कर दिया,परिषदीय स्कूलों के मर्जर पर अंतरिम रोक लगाने से हाईकोर्ट ने किया इनकार राज्य सरकार के समेकन आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर 21 अगस्त को अगली सुनवाई 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों को मर्ज करने की नीति को कोर्ट से मिली आंशिक राहत सीतापुर के 210 में से मात्र 14 विद्यालयों में यथास्थिति शिक्षण गुणवत्ता सुधार और संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में सरकार का बड़ा कदम जिसमें समेकन प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की अपील की गई थी। कोर्ट ने कहा कि समेकन पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं बनता। हालांकि, सीतापुर जनपद को लेकर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वहां फिलहाल यथास्थिति बनाए रखी जाए और अगली सुनवाई तक किसी प्रकार की नई कार्रवाई न हो। सरकार ने अपने पक्ष में दलील दी कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, शिक्षकों के समुचित उपयोग और विद्यालयीय संसाधनों की प्रभावी व्यवस्था के उद्देश्य से उठाया गया है। शिक्षा विभाग का मानना है कि अत्यल्प नामांकन वाले विद्यालयों को पास के प्रभावी स्कूलों में मर्ज करने से छात्रों को बेहतर शिक्षा, आधारभूत सुविधाएं और योग्य शिक्षक उपलब्ध हो सकेंगे। कोर्ट में अगली सुनवाई की तिथि 21 अगस्त तय की गई है। इस दिन समेकन नीति की संवैधानिक वैधता और इसके व्यावहारिक प्रभावों पर विस्तृत बहस की संभावना है। इस आदेश से स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार का समेकन मॉडल फिलहाल न्यायिक समर्थन प्राप्त करता है, जबकि याचिकाकर्ताओं को अब अपनी दलीलों को अधिक मजबूत आधार पर प्रस्तुत करना होगा। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इस आदेश को नीतिगत फैसले की स्वीकृति के रूप में देखा है। यह फैसला न केवल शासन की मंशा को बल देता है, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में संरचनात्मक सुधारों की दिशा में भी अहम कदम माना जा रहा है।