पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को लंदन से उमर अब्दुल्लाह की यह नसीहत-

By Tatkaal Khabar / 12-11-2018 05:17:52 am | 10891 Views | 0 Comments
#

London : 

लंदन : नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि कश्मीर पर बातचीत के सिलसिले में किसी प्रगति का रास्ता तैयार करने के लिहाज से भारत की वाजिब चिंताओं पर पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को आत्मावलोकन करना चाहिए.
वरिष्ठ कश्मीरी नेता ने कहा, ‘जब तक हम अपनी चुनाव प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, मुझे लगता है कि पाकिस्तान को भारत की वाजिब चिंताओं को समझने के लिए थोड़ा आत्मावलोकन करने की जरूरत है.’

भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों के बदलते आयाम के संबंध में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) की ओर से आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद को खुला घूमने की छूट देने का पाकिस्तान सरकार का फैसला दोनों देशों के बीच बेहद महत्वपूर्ण विश्वास बहाली के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है.
लंदन में शुक्रवार को एक कार्यक्रम से इतर अब्दुल्ला ने कहा, ‘कश्मीर पर 20 डाक टिकटें जारी करने का इमरान खान सरकार का हालिया फैसला ऐसे में मददगार साबित नहीं होगा, क्योंकि हम विश्वास बहाली के कदम उठाने के स्थान पर विश्वास तोड़ने का काम कर रहे हैं.’
पाकिस्तान ने कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वानी और अन्यों का महिमामंडन करने वाली कुछ 20 डाक टिकटें जारी कीं. यह बहुत बड़ी वजह थी कि सितंबर में न्यूयॉर्क में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की बैठक को भारत ने स्थगित कर दिया था.
उमर ने कहा, ‘पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है. पाकिस्तान के साथ हमारी जो भी चिंताएं हों, हमने स्वीकार किया है कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में हमारे पास बातचीत ही एकमात्र विकल्प है. हमें बातचीत के जरिये अपने मतभेद सुलझाने होंगे. लेकिन, उसके लिए किसी स्तर पर पाकिस्तान की चिंताओं को भी समझना होगा.’
उमर ने भारत सरकार तथा जम्मू-कश्मीर में उनके प्रतिनिधि राज्यपाल सत्यपाल मलिक और जम्मू-कश्मीर के युवाओं के बीच संवाद की कमी की भी आलोचना की. उनका कहना है कि जितनी जल्दी संभव हो, इस खाई को पाटना जरूरी है.
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के युवा 1990 के दशक की शुरुआत से कहीं ज्यादा अब अलग-थलग पड़ गये हैं. पढ़े-लिखे युवा और सुरक्षित नौकरियों वाले लोग आतंकवादी खेमे में शामिल हो रहे हैं. यह बेहद चिंता का विषय है|