टेलीकॉम कंपनियों को SC से AGR चुकाने के लिए 10 साल का मिला समय

By Tatkaal Khabar / 01-09-2020 02:31:09 am | 13632 Views | 0 Comments
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AGR/Telecom Companies: एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों को बड़ी राहत दे दी है. कोर्ट ने एजीआर बकाया चुकाने के लिए कंपनियों को 10 साल का समय दिया है. कोर्ट ने कहा कि टेलिकॉम कंपनियों को बकाया राशि का 10 फीसदी एडवांस में चुकाना होगा. फिर हर साल समय पर किस्त चुकानी होगी. इसके लिए कोर्ट ने 7 फरवरी समय तय किया है. कंपनियों को हर साल इसी तारीख पर बकाया रकम की किस्त चुकानी होगी. ऐसा न करने पर ब्याज देना होगा.

कुल एजीआर बकाया 1.69 लाख करोड़
बता दें कि कुल एजीआर बकाया 1.69 लाख करोड़ रुपये का है. जबकि, अभी तक 15 टेलीकॉम कंपनियों ने सिर्फ 30,254 करोड़ रुपये चुकाये हैं. टेलिकॉम कंपनियों ने एजीआर बकाए के लिए 15 साल का समय मांगा था. इस खबर के बाद एनएसई पर वोडाफोन-आईडिया का शेयर 10 फीसदी से ज्यादा टूट गया. वहीं, भारती एयरटेल के शेयर में 5 फीसदी की तेजी आई है. AGR की बकाया रकम पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना पहला फैसला 24 अक्टूबर 2019 को अपना पहला फैसला सुनाया था. इसके बाद वोडाफोन आइडिया ने कहा था कि अगर उसे बेलआउट नहीं किया गया तो उसे भारत में अपना कामकाज बंद करना होगा.

पेमेंट डिफाल्ट करने पर क्या होगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कंपनियां इन 10 साल के दौरान पेमेंट पर डिफॉल्ट करती हैं तो इंटरेस्ट और पेनल्टी देनी होगी. वहीं, टेलिकॉम कंपनियों को AGR की बकाया रकम चुकाने का हलफनामा जमा करना होगा.

किस कंपनी पर कितना है बकाया
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस. एयरटेल पर 35 हजार करोड़, वोडाफोन आइडिया पर 53 हजार करोउ़ और टाटा टेलीसर्विसेज पर करीब 14 हजार करोउ़ का बकाया है.

एजीआर पर दोनों पक्ष की राय
टेलिकॉम डिपार्टमेंट का कहना है कि AGR की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाले कुल आय के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट इंट्रेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल हो. वहीं, टेलीकॉम कंपनियों का कहना था कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए. लेकिन पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों के खिलाफ फैसला दिया था.