यथार्थ लिखते ही नहीं जीते भी थे प्रेमचंद, विधवा विवाह से पेश की थी नजीर

By Tatkaal Khabar / 08-10-2019 04:52:18 am | 14073 Views | 0 Comments
#

यथार्थ को लिखने वाले भारत के मशहूर लेखक मुंशी प्रेमचंद असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव का निधन आज ही के दिन यानी 8 अक्टूबर को साल 1936 में हुआ था. आइए जानें- किस तरह वो अपनी जिंदगी में समाज की तमाम बुराइयों के खिलाफ न सिर्फ लिखकर बल्कि अपने कृतित्व से उसे जीते भी थे. आइए-जानें, मुंशी प्रेमचंद से जुड़ी कुछ खास बातें.

मिलती थी 18 रुपये तनख्वाह

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था. उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था. अपने मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंनेसमाज की तमाम बुराइयों के खिलाफ लिखाशिक्षक रहने के दौरान 18 रुपये प्रतिमाह था प्रेमचंद का वेतनबाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया

धनपत राय की बजाय प्रेमचंद उपनाम रख लिया. उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाकघर में मुंशी का पद संभालते थे. वे शुरुआती दिनों में चुनार में शिक्षक थे. तब उन्हें 18 रुपये तनख्वाह मिला करती थी. वे हिंदी के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर भी बराबर की पकड़ रखते थे. लेखन को रोमांस और कल्पना की ऊंचाइयों से खींचकर समाज को मानवीय सच्चाइयों से रूबरू कराने वाले हिन्दी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद कभी एक टीचर थे. वो गांव के एक स्कूल में 18 रुपए तनख्वाह में पढ़ाते थे.

ऐसे जिया यथार्थ

प्रेमचंद के उपन्यास गबन, गोदान, निर्मला आज भी वास्तविकता के बेहद करीब दिखते हैं. उन्होंने सिर्फ अपनी कहानियों का काल्पनिक रचना संसार रचने के बजाय अपने जीवन में भी उस यथार्थ को जिया. जब उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया तो उस जमाने में ये सामाजिक सरोकार से जुड़ा मामला था. सिर्फ भारत ही नहीं वो पूरी दुनिया में मशहूर और सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं. प्रेमचंद की कहानियों के किरदार आम आदमी हैं. ऐसे ही उनकी कहानियों में आम आदमी की समस्याओं और जीवन के उतार-चढ़ाव दिखते हैं.

ऐसा था बचपन

प्रेमचंद जब 6 साल के थे, तब उन्हें लालगंज गांव में रहने वाले एक मौलवी के घर फारसी और उर्दू पढ़ने के लिए भेजा गया. वह जब बहुत ही छोटे थे, बीमारी के कारण इनकी मां का देहांत हो गया. उन्हें प्यार अपनी बड़ी बहन से मिला. बहन के विवाह के बाद वह अकेले हो गए. सुने घर में उन्होंने खुद को कहानियां पढ़ने में व्यस्त कर लिया. आगे चलकर वह स्वयं कहानियां लिखने लगे और महान कथाकार बने.

धनपत राय का विवाह 15-16 बरस में ही कर दिया गया, लेकिन कुछ समय बाद ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया. कुछ समय बाद उन्होंने बनारस के बाद चुनार के स्कूल में शिक्षक की नौकरी की, साथ ही बीए की पढ़ाई भी. बाद में उन्होंने एक बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया, जिन्होंने प्रेमचंद की जीवनी लिखी थी. शिक्षक की नौकरी के दौरान प्रेमचंद के कई जगह तबादले हुए. उन्होंने जनजीवन को बहुत गहराई से देखा और अपना जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया.

ये हैं उनकी खास कहानियां

मंत्र, नशा, शतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, आत्माराम, बूढ़ी काकी, बड़े भाईसाहब, बड़े घर की बेटी, कफन, उधार की घड़ी, नमक का दरोगा, पंच फूल, प्रेम पूर्णिमा, जुर्माना आदि.


ये थी रचनाएं जो हुईं पूरी दुनिया में मशहूर

प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां और 14 बड़े उपन्यास लिखे. सन् 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में उनके साहित्य का अनुवाद हो चुका है, इसमें विदेशी भाषाएं भी शामिल है. अपनी रचना 'गबन' के जरिए से एक समाज की ऊंच-नीच, 'निर्मला' से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और 'बूढी काकी' के जरिए 'समाज की निर्ममता' को जिस अलग और रोचक अंदाज में उन्होंने पेश किया, उसकी तुलना नही है. इसी तरह से पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य की बड़ी सेवा की है.